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उड़ीसा में अकाल

करवानेका सबसे सुगम मार्ग वहाँ राष्ट्रसेवकोंको ही भेजना है। जिस प्रकार अच्छा कारीगर खराब औजारोंसे भी काम निकाल ले जाता है और निकम्मे औजारोंको सुधार भी लिया करता है उसी प्रकार सच्चे राष्ट्रसेवक खराब अधिनियमसे भी जनताका हित-साधन कर सकते हैं।

मतदाताओंके कर्त्तव्योंपर फिर कभी विचार किया जायेगा।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, ९-५-१९२०

१६९. उड़ीसामें अकाल

हममें से अधिकांश लोगोंको उड़ीसा कहाँ है, इस बातकी भी खबर नहीं है। उड़ीसाको ही कविवर सर रवीन्द्रनाथ ठाकुरने अपने प्रसिद्ध गीतमें " उत्कल " नामसे पुकारा है। उड़ीसामें ही जगन्नाथ पुरी है। पुरीके इस जिलेमें भयंकर अकाल पड़ा हुआ है। उड़ीसा बिहार प्रान्तका एक भाग है और बिहार तथा उड़ीसा एक ही लेफ्टिनेंट गवर्नरके अधीन हैं। उड़ीसा भारतका एक अत्यन्त गरीब अंचल है। वहाँके लोग हर तरहसे पिछड़े हुए हैं और इस कारण हमें उनके कष्टोंकी बात बहुधा सुनाई नहीं पड़ती।

इस अकालकी वजहसे अनेक बार मुझसे उड़ीसा जानेको कहा गया है, लेकिन मैं स्वयं वहाँ जा सकूं, ऐसी स्थिति न होनेके कारण तथा भाई अमृतलाल ठक्कर जमशेदपुरका काम निबटा चुके थे इसलिए मैंन उन्हींसे वहाँ हो आनेका आग्रह किया और वे चौबीस घन्टेमें तैयार होकर रवाना हो गये हैं। वहाँ पहुँचकर उनका पत्र तथा तार भी आ गया है कि वे गाँवोंमें जाँच करने चले गये हैं। लेकिन उनके पत्र पढ़नेपर पता चलता है कि वहाँ तो दुःखोंकी कोई सीमा ही नहीं है। वे लिखते हैं:

में एक बंगाली बाल-निवास तथा भिखारियोंके एक अस्पतालमें गया था।ये संस्थाएँ कलकत्तेसे प्राप्त चन्देकी रकमसे चलाई जाती हैं। बाल-निवास निराधार लड़के और लड़कियोंकी संख्या एक सौके लगभग है और अस्पतालमें ३०-३५ रोगी हैं। इन दोनों संस्थाओंकी इस बड़ी संख्यासे आसपास के प्रदेशकी मुसीबतका अन्दाज लगाया जा सकता है।

दूसरे पत्र में वे लिखते हैं:

अनेक व्यक्ति भूखसे मर गये हैं। एक गैर-सरकारी समितिने इस सम्बन्धमें जाँच करके जो रिपोर्ट प्रकाशित की है उसे मैंने पढ़ा है। यह रिपोर्ट अवश्य ही प्रकाशित की जानी चाहिए। मैं कल शामको बैलगाड़ीसे गाँवोंमें जानेवाला

१. भारतके वर्तमान राष्ट्र-गान में।