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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वैसे-वैसे यह जाननेकी इच्छा भी बढ़नी चाहिए कि हिन्दुस्तानके भिन्न-भिन्न भागों में क्या होता रहता है।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, ९-५-१९२०

१६८. एक विनम्र निवेदन

देखता हूँ, बहुत से लोग नई कौंसिलोंमें जानके इच्छुक हैं। कोसिल-प्रवेशसे' देश- सेवा सम्भव है, इससे में इनकार नहीं करता, परन्तु मेरी धारणा यह है कि बहुतेरे व्यक्ति कौंसिलोंसे बाहर रहकर उससे भी अधिक सेवा कर सकते हैं। पार्लियामेंट में बहुत-सा समय वितण्डावादमें ही चला जाया करता है और फिर जहाँ जानेके लिए अनेक लोग तैयार हों वहाँ सेवाव्रत धारण करनेवालोंका तो बाहर रहना ही उचित है। ऐसे व्यक्तियोंको अनुभव से प्रतीत हो जायेगा कि उनके समयका अधिक सदुपयोग मतदाताओंको शिक्षित करने तथा कौंसिल सदस्यों द्वारा [वोट मांगते समय दिये गये] वचनोंका पालन कराने में होगा।

इंग्लैंडमें भी पार्लियामेंट के बाहर काम करनेवाले जितनी अच्छी सेवा कर दिखाते हैं उतनी पार्लियामेंटके सदस्य नहीं कर पाते। इंग्लैंडके सदनमें ७०० से ऊपर सदस्य हैं; परन्तु राष्ट्रका कामकाज तो सात सौ सदस्योंके द्वारा ही संचालित नहीं होता। जनताकी गाड़ी तो चलती है उनसे जो पार्लियामेंटके बाहर रहकर काम करते हैं। इसलिए जिनके मनमें और कोई लोभ नहीं है और जिन्होंने सेवाधर्म समझ लिया है। उनसे मेरा निवेदन यही है कि वे कौंसिलोंमें जानेका बिलकुल मोह न करें।

कौंसिलोंमें जानेकी इच्छा रखनेवालोंसे में कहना चाहता हूँ कि अगर आप वहाँ जानेकी ख्वाहिश अपने स्वार्थकी खातिर रखते हों तो कौंसिल-प्रवेशका विचार त्याग दीजिए। स्वार्थ-साधनके अन्य अनेक मार्ग हैं। जनताके हितके लिए ही संघका निर्माण हो रहा है। हम अपने स्वार्थकी खातिर राष्ट्रके हितका हनन क्यों करें? मुझे यह मालूम नहीं है कि कौंसिलोंमें जानके इच्छुक कौन-कौन हैं; परन्तु जिस प्रकार नगर- पालिकाओं में हो रहा है वैसा ही कौंसिलोंमें होने की आशंका है। इसी कारण में यह उपर्युक्त निवेदन कर रहा हूँ। यदि हम कौंसिलोंमें सच्चे, विनयशील, जनताके हितोंके इच्छुक, साहसी, निडर और अपने विषयको ठीक-ठीक रूपसे समझनेवाले व्यक्ति भेजेंगे तो कौंसिलोंसे लाभ उठाया जा सकता है।

संशोधित विधानमें अनेक त्रुटियाँ हैं। इन त्रुटियोंको दूर करना ही चाहिए। परन्तु जिस प्रकार किसी अनाड़ी नाईके हाथमें अच्छेसे-अच्छा उस्तरा देना बेकार है उसी प्रकार स्वार्थ-परायण या ज्ञानहीन व्यक्तियोंका अच्छेसे-अच्छे विधानसे किसी तरह लाभ उठा सकना सम्भव नहीं है। सुधार अधिनियम में जल्द से जल्द परिवर्तन

१. १९१९ के सुधार-अधिनियमके अन्तर्गत धारा सभाओंके लिए चुनाव नवम्बर १९२० में होनेको थे।