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सीमापर अपहरण

होनेपर ही उसे छोड़ा था। इसी तरह वे निकट रहनेवाले हिन्दुओंको लूटते हैं, उन्हें पकड़ ले जाते हैं और रकम मिलनेपर ही छोड़ते हैं। वे मुसलमानोंको भी इसी तरह दुःखी करते हैं । अर्थात् वे केवल हिन्दुओंको ही लूटते हों, सो बात नहीं है। तथापि फिलहाल हिन्दू-मुसलमानोंकी एकताका मधुर समीर बह रहा है, इससे अनेक हिन्दू इस एकतापर जोर देते हुए कहते हैं कि यदि मुसलमान सच्चे हैं तो उन्हें किसी- न-किसी उपायके द्वारा यह लुटपाट रोकनी चाहिए। मेरी मान्यता है कि ऐसा कहना अज्ञानका सूचक है। भारतके मुसलमानोंका सरहदपर रहनेवाली जंगली कौमोंपर कोई प्रभाव नहीं है। और फिर में यह बता ही चुका हूँ कि स्वयं मुसलमान भी इसके शिकार बिनते हैं। फिर भी हमें इस पीड़ाका उपचार खोजना ही चाहिए। जो इस प्रकार त्रस्त किये जाते हैं, उन्हें मदद मिलनी ही चाहिए। यह काम सरकारका है। यदि सरकार लोगोंको इतना संरक्षण भी नहीं दे सकती तो संरक्षण देनेकी जिस महान् शक्तिसे वह सुसज्जित मानी जाती है, उसका उपयोग क्या है? मुझे स्वयं इस शक्ति- का बहुत मोह कभी नहीं रहा। अपराध होनेके बाद सरकारके पास अपराधीको दण्ड देनेकी जितनी शक्ति है उतनी अपराधको रोकनेकी नहीं है। अरार और कतारपुरके मामले तो ताजे हैं। उसमें में तो सरकारका विशेष दोष नहीं मानता। जबतक मनुष्य अपना स्वभाव नहीं बदलता तबतक अपराध तो होते ही रहेंगे। दण्डके भयसे जितना रोका जा सकता है, उतना कम-ज्यादा प्रमाणमें राज्य सत्ता रोकती है।

अच्छा और सही उपाय तो लोगोंके हाथमें ही है। सरहद अथवा अन्य स्थानों- पर रहनेवाले लोगोंमें अपना बचाव करने की शक्ति आनी ही चाहिए, न हो तो उसका विकास किया जाना चाहिए। एक तरीका तो पड़ोसीको प्रेमभावसे जीत लेना है और दूसरा भयसे रोकना है। सामान्यतया दोनों ही तरीकोंका प्रयोग किया जाता है। लोग अपनी रक्षाके योग्य शरीर-शक्ति प्राप्त कर लेते हैं और पड़ोसीके साथ प्रेमभाव बनाये रखने का प्रयत्न भी करते रहते हैं। सीमावर्ती गाँवोंके लोग इन दोनों उपायोंका प्रयोग कर सकते हैं। वे स्वयं एकत्रित होकर लुटेरोंकी टोलीके विरुद्ध लड़नेकी तैयारी कर सकते हैं, उसी तरह शान्तिके समय सलाह-मशविरा भी कर सकते हैं। सीमापर रहनेवाली जातियाँ अगर भूखों मरती हों तो उन्हें पड़ोसी मानकर कुछ शर्तोपर उनकी सहायता कर सकते हैं। सरकार खुद भी ऐसा ही करती है।

इसके साथ-साथ जो मुसलमान सीमापर रहनेवाली जातियोंसे तनिक भी सम्बन्ध रखते हैं, वे इन जातियोंको सन्देश भेजकर उन्हें लूटपाट करनेसे रोक सकते हैं । इस तरह सरकारकी ओरसे, लोगोंकी ओरसे और विशेषतया मुसलमानोंकी ओरसे उपचार किये जायें तो इन उपद्रवोंसे बचा जा सकता है। मुसलमान कुछ नहीं करते, यह मानकर बैठे रहने से कोई बात नहीं बनेगी और ऐसा विचार उन्हें अन्यायी भी ठहराता है।

इस विषयपर मुझे लिखना पड़ा है क्योंकि आजकल उत्तरके समाचारपत्र इस विषय से भरे रहते हैं; इस सम्बन्धमें मुझे कुछ पत्र भी प्राप्त हुए हैं और सीमाके लोग भी मुझसे मिलने के लिए आये हैं। जैसे-जैसे राष्ट्रीय भावना बढ़ती जाती है