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१६. खादीकी कीमत


बम्बईसे विट्ठलदास जेराजाणी समाचार देते हैं कि इस समय बम्बईमें खादीकी खपत कम हो गई है अथवा ऐसा भी कह सकते हैं कि बिलकुल खत्म हो गई है। यह खबर पढ़कर मुझे दुःख हुआ, अलबत्ता, आश्चर्य नहीं हुआ। दुःख हुआ क्योंकि खादीकी कम खपत यह सूचित करती है कि हमारा उत्साह क्षणिक है और यह कि उसके पीछे धार्मिक वृत्ति अथवा भावना नहीं है। जो जनता धर्म समझकर मैला पानी पीनेको तैयार रहती है, जो हिन्दू लोग धर्म मानकर रेलगाड़ीमें खानेसे छूत लग जानेके भयसे भूखे रह सकते हैं, जो मुसलमान लोग अमुक ढंगसे तैयार न किये गये मांसका त्याग करते हैं, वे लोग यदि यह मानें कि खादीका प्रयोग करना दया-धर्म है, वह एक पवित्र वस्तु है, तो वे उसका त्याग नहीं करेंगे।

सारी खादी एक समान अच्छी नहीं होती, उसमें सलवट पड़ती हैं, उसके कोट-पतलूनमें कड़ापन नहीं रहता, वह इतनी सिकुड़ जाती है कि हाथकी कलाईसे कुहनी तक पहुँच जाती है। उसमें चलनीके समान छेद हो जाते हैं, यहाँतक कि उसमें से मूँगके दाने भी निकल जाते हैं। इन सब बातोंका किसी-किसीको अनुभव हुआ होगा। मेरा अनुभव यह है कि में खादीके कुरते आदि ज्यों-ज्यों पहनता जाता हूँ त्यों-त्यों वे मुलायम होते जाते हैं। उसकी बनी धोतियाँ भी मुझे तो भारी नहीं मालूम होती और अब मिलकी बनी धोतियाँ पहनना मुझे कठिन लगता है। हो सकता है कि यह सब मेरा भ्रम हो किन्तु मुझे तो उसमें धर्म जान पड़ता है।

यह सब खादी बनती कैसे है? उसका सूत अधिकांशतः गरीब बहनों द्वारा कता हुआ होता है। उनमें से कितनी ही बहनें तो किसी तरह अपने दिन काटती थीं, अब उनका जीवन काफी सुधरा है, अथवा वे पहले जो कोई धन्धा नहीं करती थीं, उसके बदले अब कुछ नहीं तो दिनका एक आना तो कमा लेती है। उससे अपने घरकी भाजी खरीद सकती हैं, अपने बच्चोंके लिए दूध ले सकती हैं। जिस एक आनेको हम बम्बईमें [व्यर्थ ही] फेंक देते हैं, गाँवमें उस एक आनेकी कीमत चार आनेके बराबर तो है ही।

इस खादीको बुननेवाले वे लोग हैं जो अपना बुनाईका धन्धा छोड़ बैठे थे, अथवा छोड़नेकी तैयारीमें थे।

खादीका प्रयोग स्वदेशीका आधार-स्तम्भ है क्योंकि जो मोटे सूतसे और आसानीसे बुना जा सकता हो ऐसा कपड़ा खादी ही है। अभी तो खादीको मशीनसे बने वस्त्रसे होड़ भी नहीं करनी पड़ती। खादीकी खपतसे ही लाखों गरीब व्यक्ति अपने घर बैठे ईमानदारीसे आजीविका प्राप्त कर सकते है।

यह खादी दिन-प्रतिदिन सुधरती जायेगी, सुधर रही है। इसके अनेक उपयोग हैं। यदि इसकी कमीजें आदि नहीं बनाई जा सकतीं तो ढीला कुर्ता, बनियान आदि तो बनाये ही जा सकते हैं, छोटे और बड़े रूमाल, तकियों और गद्दियोंके खोल तो