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दिल्ली में दमन

किसी न्यायसंगत उद्देश्यका साथ देते हैं वे केवल आपत्ति करके कभी सन्तुष्ट नहीं होते। यह देखा गया है कि वे उसके लिए प्राणतक दे देते हैं। क्या मुसलमान- जैसी जोशीली जातिसे इससे कम करनेकी अपेक्षा की जा सकती है?

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, ५-५-१९२०


१६६. दिल्लीमें दमन

यह माननेका तो कोई कारण ही नहीं था कि सरकारकी ओरसे दमनकी कार्र- वाई ही नहीं की जायेगी और खिलाफतका आन्दोलन चलता रहेगा। यदि किसीने ऐसा माना हो तो दिल्ली सरकारकी ओरसे प्रकाशित विज्ञप्तिसे उसकी आँखें खुल जानी चाहिए। सरकारी विज्ञप्तिमें यह कहा गया है कि दिल्ली प्रान्तमें कोई भी व्यक्ति सरकारसे अनुमति लिये बिना तीन महीनेतक सभाएँ आदि नहीं कर सकता। और यह तो अभी प्रारम्भ ही है।

असहकार-जैसे आन्दोलनको सरकार दमनकी कोई कार्रवाई किये बिना कैसे चलने देगी। कोई भी सरकार ऐसे आन्दोलनको चलने नहीं देती। इस आन्दोलनका अर्थ यह है कि यदि यह सफल हो जाये तो सरकारका कारोबार ही रुक जाये। ऐसी संभावनाको रोकनेके लिए हर सरकार कदम उठाती ही है।

सरकारके कदम उठानेसे ही लोगोंकी परीक्षा होगी। सरकार अगर बिलकुल चुपचाप बैठी रहे तो असहकारका असर भी कम पड़ेगा। प्रत्येक राज्यसत्ताके हाथमें अन्तिम उपाय बन्दूक अर्थात् राजदण्ड है। लेकिन इस संघर्ष में जनताका हथियार उसकी सहनशीलता है। यदि सरकारके शरीर-बलके विरुद्ध जनता अपने शरीर-बलकी आजमाइश करना चाहेगी तो जनता हार जायेगी। असहकार करनेवालेको शरीर-बल आ विचार बिलकुल छोड़ना पड़ेगा। इसलिए मुझे उम्मीद है कि दिल्लीमें अथवा दूसरे किसी भी स्थानपर सरकारकी ओरसे चाहे जो कदम उठाये जायें, लोग बिल्कुल शान्त रहेंगे। ऐसी शान्ति बनाये रखने में और अपना निर्धारित कार्य करने में ही प्रजाकी जीत है। इतना याद रखना चाहिए कि यह मित्र राष्ट्रोंके पशु-बल तथा हिन्दुस्तानी जनताके आत्मिक बलके बीच होनेवाला संघर्ष है। इसमें यदि जनताकी ओरसे पशु- बलका तनिक भी प्रदर्शन किया गया तो [इसमें प्रयुक्त] आत्मिक बलको पशुबल अथवा दुर्बलता कह दिया जायेगा।

यदि जनता खिलाफतका मामला आत्मिक बलसे जीतनेकी उम्मीद करती है तो उसे जेल जाने, सम्पत्ति खोने तथा नौकरियां छोड़नेको तैयार रहना चाहिए। इस आन्दोलन में आसानी से जीत जानेकी आशा नहीं करनी चाहिए।

१. देखिए “ दिल्लीकी विज्ञप्ति और अखबारोंको आदेश ", ५-५-१९२० ।