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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वैसा ही मित्र हूँ। और इसलिए वे मेरा ध्यान अंग्रेजोंकी अपेक्षा अधिक आकर्षित करनेके अधिकारी हैं। किन्तु मेरे निजी धर्ममें मेरे लिए अंग्रेजोंका या किसी अन्यका दिल दुखाये बिना अपने देशवासियोंकी सेवा करनेकी छूट है। जो व्यवहार में अपने सगे भाईके प्रति करनेको तैयार नहीं हूँ वह में एक अंग्रेजके प्रति भी नहीं करूंगा। राज्य मिलता हो तो भी मैं उसे चोट न पहुँचाऊँगा । किन्तु यदि आवश्यक हुआ तो में उससे उसी तरह सहयोग करना बन्द कर दूंगा जैसे मैंने अपने सगे भाईसे' (जो अब नहीं रहे) बन्द कर दिया था। मैं साम्राज्य के अन्यायमें भाग लेनेसे इनकार करके उसकी सेवा करता हूँ। विलियम स्टेडने बोअर-युद्धके समय खुले आम अंग्रेजोंकी हारके लिए प्रार्थनाएँ की थीं, क्योंकि उनका खयाल था कि उनकी जाति एक अन्यायपूर्ण युद्धमें रत है। वर्तमान प्रधानमन्त्री अपनी जान जोखिममें डालकर उस युद्धका विरोध किया था और उसको चलाने में अपनी सरकारके मार्ग में बाधा डालनेके लिए शक्ति-भर सब-कुछ किया था। और आज में मुसलमानोंके साथ सम्मिलित हो गया हूँ जिनमें से एक बहुत बड़ी संख्या अंग्रेजोंके प्रति कोई मैत्रीभाव नहीं रखती है। मैंने ऐसा स्पष्टत: अंग्रेजोंके मित्र के रूप में और न्याय प्राप्त करनेके उद्देश्य से एवं उसके द्वारा यह दिखानेकी गरजसे किया है कि अगर संकल्प सच्चा हो और साथ ही उसके लिए कष्ट सहन किया जाये तो ब्रिटिश संविधान में कुछ ऐसी खूबी है कि वह संकल्प विफल नहीं हो सकता। मैं मुसलमानोंका साथ देकर तीन उद्देश्य पूरे करना चाहता हूँ – एक, विविध कठिनाइयोंके होते हुए सत्याग्रहके द्वारा न्याय प्राप्त करना -- और अन्य तरीकोंकी तुलनामें इसकी सक्षमता सिद्ध करना; दूसरा, हिन्दुओंके लिए मुसलमानोंकी मंत्री पाना और उसके द्वारा देशमें आन्तरिक शान्ति प्राप्त करना और तीसरा जो इनकी अपेक्षा तनिक भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं है, अंग्रेजों एवं उनके उस संविधानके प्रति उनके दुर्भावको सद्भावमें परिवर्तित करना जो अपनी अपूर्णताओंके बावजूद अनेक तूफानोंके सम्मुख टिका रह सका है। सम्भव है कि मैं इनमें से किसी उद्देश्यको प्राप्त न कर सकूँ। में तो केवल प्रयत्न ही कर सकता हूँ । सफलता देना तो ईश्वरके ही हाथ में हैं। इस बातसे कोई इनकार न करेगा कि ये सभी उद्देश्य उदात्त हैं। मैं हिन्दुओं और अंग्रेजोंको निमन्त्रित करता हूँ कि वे उस बोझको, जिसे भारतके मुसलमान ढो रहे हैं, उठाने में हृदयसे मेरा साथ दें। सभी स्वीकार करेंगे कि उनकी लड़ाई न्यायकी लड़ाई है। वाइसराय, भारत-मन्त्री, महाराजा बीकानेर और लॉर्ड सिन्हाने अपनी साक्षीसे इस तथ्यकी पुष्टि की है। इस साक्षीको कार्यरूप देनेका समय आ गया है। जो लोग

१. करसनदास गांधी।

२. विलियम टॉमस स्टेड (१८४९-१९१२); अंग्रेज पत्रकार और सुधारक; जिनके साहस और मौलिकताका समसामयिक पत्रकारिता और राजनीतिपर सफल प्रभाव पड़ा; ब्रिटेनके शान्ति आन्दोलनके उत्साही समर्थक।

३. लॉयड जॉर्ज।

४. सर गंगासिंहजी (१८८०-१९४३); प्रथम विश्व युद्धको समाप्तिके बाद लीग ऑफ नेशन्समें भारतका प्रतिनिधित्व किया। १९२०-२५ में नरेन्द्र मण्डल (चैम्बर ऑफ प्रिन्सेज) के अधिपति।