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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अत्यन्त उत्तेजित किये जानेपर भी हिंसा न की जाये। सरकार अहिंसाके किसी नियम से बँधी हुई नहीं है। असलमें किसी भी सरकारका अन्तिम सहारा हिंसा ही होती है। नेता मुकदमे चलाये जाने और नजरबन्द तथा कैद किये जाने आदिके लिए तैयार रहें। दूसरे लोग उनकी जगह लेनेके लिए तैयार हैं। जब हम शुद्धिकी इस प्रक्रिया से निकलकर अपनी योग्यता सिद्ध कर चुकेंगे तभी हमारी जीत होगी, उससे पहले नहीं।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, ५-५-१९२०

१६५. असहयोगको कार्यान्वित कैसे करें?

असह्योग-सम्बन्धी आशंकाओं और आलोचनाओंका उत्तर देनेका सबसे अच्छा तरीका शायद यह है कि असहयोगकी योजनाको अधिक विस्तारसे समझाया जाये। आलोचक यह अनुमान करते जान पड़ते हैं कि इस योजनाके संयोजक समस्त योजना- को एक साथ कार्यान्वित करना चाहते हैं। किन्तु तथ्य यह है कि इसके संयोजकोंने इसकी निश्चित और क्रमानुगत चार अवस्थाएँ निर्धारित की हैं। पहली अवस्था है उपाधियोंका त्याग और अवैतनिक पदोंसे त्यागपत्र। यदि इसका कोई अनुकूल उत्तर नहीं मिला या जो मिला है वह अपर्याप्त हुआ तो दूसरी अवस्थाका आश्रय लिया जायेगा। दूसरी अवस्था में पहलेसे ही बहुत कुछ व्यवस्था करनी पड़े । निश्चय ही, तबतक एक भी नौकरको नौकरी छोड़नेके लिए नहीं कहा जायेगा जबतक या तो वह अपना और अपने आश्रितोंका पेट न भर सके या खिलाफत समिति इस बोझको न उठा सके। सब वर्गोंके नौकरोंको एक साथ नौकरी छोड़नेके लिए नहीं कहा जायेगा और एक भी सरकारी नौकरपर सरकारी नौकरी छोड़नेके लिए दबाव नहीं डाला जायेगा। और न एक भी निजी कर्मचारीको हाथ लगाया जायेगा। जिसका सीधा-सादा कारण यह है कि यह आन्दोलन अंग्रेजोंके विरुद्ध नहीं है। यह सरकार-विरोधी भी नहीं है। सहयोग इसलिए बन्द किया जायेगा कि लोगोंको एक अन्यायमें ---एक वचन -भंगमें- एक गहरी धार्मिक भावनाको ठेस पहुँचाने में साझेदार न होना चाहिए। यदि खिलाफत समितिके किसी भी सदस्य द्वारा किसी सरकारी नौकरपर कोई अनुचित दबाव डाला जायेगा या हिंसाका प्रयोग किया जायेगा या हिंसाके प्रयोगको उत्तेजना दी जायेगी तो स्वभावतः आन्दोलनकी प्रगतिमें रुकावट पैदा होगी। यदि पर्याप्त मात्रामें अनुकूल प्रतिक्रिया हुई तो आन्दोलनकी यह दूसरी अवस्था अवश्य ही पूरी तरह सफल होगी। क्योंकि यदि लोग सरकारकी नौकरी करना बन्द कर दें तो कोई भी सरकार टिक नहीं सकती. भारत सरकार तो और भी नहीं टिक सकती। इसलिए तीसरी अवस्था, जिसमें लोगोंसे पुलिस और सेनासे निकल आनेको कहा जायेगा, दूरस्थ उद्देश्य है, किन्तु संयोजक न्याय और औचित्यका पालन करना और सन्देहसे परे रहना चाहते

१. देखिए " भाषण: खिलाफतपर ", १९-५-१९२० की पाद-टिप्पणी १ ।