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दिल्लीकी विज्ञप्ति और अखबारोंको आदेश

मैं तुम्हें परम शान्त और प्रफुल्लित देखना चाहता हूँ। शामलदासने मुझे रुपयेके लिए तार दिया है। उसे में इनकार लिख रहा हूँ। उसे रुपया हरगिज नहीं दिया जा सकता।

बापूके आशीर्वाद

मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५७८६) से।

सौजन्य : राधाबेन चौधरी

१६४. दिल्लीकी विज्ञप्ति और अखबारोंको

सरकारने दिल्ली में खिलाफत आन्दोलनके दमनके लिए कदम उठाना शुरू कर दिया है, शुरुआत हुई है राजद्रोहात्मक सभाओंके अधिनियम के अन्तर्गत निकाली गयी विज्ञप्ति से और धीरे-धीरे मुस्लिम अखबारोंका मुँह बन्द करनेकी कोशिशसे।

हमें इससे कोई आश्चर्य नहीं हुआ है। हमें समझ लेना चाहिए कि सरकार समितिके प्रत्येक कदमकी पूर्व कल्पना कर लेगी और असहयोगकी योजनामें अड़ंगा लगायेगी। जबतक सरकार समझदारीसे और नरमीसे कार्रवाई करे तबतक उसे इसके लिए दोष भी नहीं दिया जा सकता। किन्तु जनताको इसके लिए भी तैयार रहना चाहिए कि शायद सरकार विवेक खो बैठे, बौखला जाये या पागलपन-भरी कार्रवाई करे। ओ'डायरशाहीका विस्फोट कहीं भी किसी भी दिन हो सकता है। लोगोंको इन सभी संभाव्य अवसरोंके लिए तैयार रहना चाहिए। तैयारी सीधी-सादी है। चाहे कुछ भी हो जाये, वे घबराये नहीं। उन्हें क्रोध न आना चाहिए। वे शरारती लोगोंके हाथोंका खिलौना न बनें और सरकारके पागलपनका उत्तर पागलपनसे न दें। कोई भी अपनी मनमानी न करे। यह याद रखना चाहिए कि खिलाफत आन्दोलनके सिलसिलेमें सविनय अवज्ञा, कमसे-कम इस समय तो, की नहीं जानी है। असहयोग भी अभी आरम्भ नहीं हुआ है। सरकारकी प्रत्येक आज्ञाका पूरा पालन किया जाये, सब कायदों और कानूनोंपर सचाईसे अमल किया जाये। केवल तभी असहयोग आन्दोलन सफल हो सकता है। इस महान् संघर्षपर युद्धके सारे नियम लागू होते हैं। सेना चुपचाप, शान्ति- पूर्वक और सोच-समझकर आगे बढ़ती है। कोई भी दस्ता मनमानी नहीं करता। अनुशासन सफलताका मूलमन्त्र होता है। खिलाफतकी शान्ति सेनापर भी ठीक यही बात लागू होती है। इस सेना द्वारा किये गये प्रहार तभी परिणामकारक होंगे जब

१. यह लेख गांधीजीके स्वाक्षरोंमें गांधी स्मारक निधिमें सुरक्षित मसविदेके आधारपर उन्हींका लिखा हुआ माना गया है।

२. अखिल भारतीय खिलाफत समिति द्वारा नियुक्त उप-समिति जिसमें गांधीजी, शौकत अली और मौलाना अबुल कलाम आजाद थे।