पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/४५२

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१६३.पत्र: मगनलाल गांधीको

सिंहगढ़

वैशाख बदी १, [४ मई, १९२०]

आज तुम्हारी डाक मिली। तुम्हें मुझे लिखनेको समय नहीं मिला, इसलिए भाई महादेवसे जो-कुछ सुना है, उसीके आधारपर लिखकर जितनी शान्ति तुम्हें दी जा सके, उतनी देना चाहता हूँ।

१. मोटरके बारेमें मैंने पुछवाया ही क्यों? यही मेरी शिथिलता बताता है।

२. गुरुदेव तथा फातिमाके बारेमें जो किया, उसमें समय और रुपया बहुत व्यय हुआ। फल कुछ भी नहीं अथवा थोड़ा ही निकला।

३. प्रवृत्तियाँ मेरे पास आती हैं, में उन्हें ढूंढ़ने नहीं जाता, यह वाक्य ठीक नहीं।

४. सरला देवीने गादीपर बैठकर खाया। मैं भी वहीं बैठकर खाता हूँ। ऐसी क्या जल्दी? क्या मैं और वे ठीक जगहपर बैठकर खायें तो अधिक समय लगनेकी सम्भावना है? और लगे भी तो ऐसी क्या उतावली?

५. मुझमें जो कट्टरता पहले थी, वह अब जाती रही।

६. मेरी बाह्य प्रवृत्तियोंसे आश्रम और हिन्दुस्तानकी हानि हुई है।

७. सच पूछा जाये तो मुझे सब-कुछ छोड़कर आश्रममें ही बैठकर उसके काम --पाठशाला इत्यादिमें रम जाना चाहिए। अब कोई मुझपर थक जानेका आरोप नहीं लगायेगा।

८. राधाके विवाहके बारेमें।

९. मुझमें जो तेज पहले था, जिसके कारण मेरी सबको सुननी पड़ती थी, वह तेज अब जाता रहा।

ये अथवा ऐसे प्रश्न तुम्हारे मनमें आयें, इसे में स्वाभाविक मानता हूँ। इसपर भी जब में दूर होऊँ, आश्रम में रहते हुए भी दूर जैसा ही रहूँ, तब मेरी अनेक प्रवृत्तियोंके कारण बहुतसी समस्याएँ पैदा होंगी ही। मोटरके बारेमें मैंने पुछवाया, क्योंकि हमने अनेक उपाधियाँ लगा ली हैं। आर्थिक दृष्टि से मुझे मोटरउपयो गी मालूम हुई। मोटरका उपयोग तो होता ही रहता है। इसलिए मोटरकी भेंट ली जा सकती है या नहीं, इसका जवाब [दूसरोंकी सलाह लिये बिना] स्वयं देना मुझे ठीक नहीं लगा। दो

१. यह पत्र महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ५ में ३ मईके अन्तर्गत दिया गया है; चूँकि गांधीजी सिंहगढ़से ४ मईको चल दिये थे इसलिए यह तारीख ज्यादा ठीक मालूम होती है।

२. रवीन्द्रनाथ ठाकुर २ अप्रैल, १९२० को आश्रममें पधारे थे उस अवसर पर उनका स्वागत किया गया था।

३. इमाम अब्दुल कादिर बावजीरकी लड़की जिसका विवाह आश्रममें सम्पन्न हुआ था; देखिए “विवाहका निमंत्रण पत्र ", २०-४-१९२० तथा “तीन प्रसंग ", ९-५-१९२०।