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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भी राजो कर सको, तब तो मैं राधाके अखण्ड ब्रह्मचर्यको ही आश्रमकी सबसे बड़ी सफलता मानूंगा। राधाके बारेमें और विवाह के बारेमें मेरे उद्गार और विचार जो थे, वही हैं। देवदासका विश्लेषण यह है कि मेरे विचार तो ज्योंके-त्यों ही हैं, परन्तु औरोंके प्रति मेरी उदारता बढ़ी है; अथवा उसे तुम शिथिलता भी कह सकते हो। मुझे जो यह अवीरता रहती थी कि दूसरे लोग भी मेरे जैसे विचार रखें---वह अधीरता विचार और अनुभवसे जाती रही।

[गुजरातीसे]

महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ५


१६१. पत्र : स्वामी श्रद्धानन्दको

२ मई, १९२०

भाई साहब,

आपका पत्र मिला। सरकारी नौकरोंसे, नौकरी छोड़नेको तभी कहा जायेगा, जब उनके लिए खाने-पीनेकी योजना ठीक बनाई जायेगी। इस बारेमें मुसलमान भाइयों के साथ में मसलत कर रहा हूँ। देश-त्याग' करनेकी सलाह मैंने किसीको न तो दी है, न दे सकता हूँ। कितनेक मुसलमान भाइयोंका हिजरत करनेका अभिप्राय अवश्य है। उनको हम नहीं रोक सकते हैं। उससे भी हिजरतका नतीजा नहीं आ सकता है, ऐसा बता रहा हूँ। यदि सत्याग्रह [ की ] दृष्टि से हम हिन्दुस्तानका त्याग करें तब उसमें सरकारपर कुछ भी दबाव पड़नेका खयाल नहीं आ सकता। मेरी रायमें हिन्दुओंको हिन्दुस्तान छोड़नेका मौका तो तब आ सकता है, जब कोई हिन्दू राजा होगा और प्रजा उसके साथ मिलकर हिन्दू धर्मका पालन ही अनिवार्य कर देगी। यदि सरकार- का असहकार करने में इस समय हम असमर्थ होंगे तो इसका अर्थ में ऐसा ही निका- लूंगा कि मुसलमानोंकी धर्म-वृत्ति क्षीण हो गई है। हर कोई देख सकता है कि इस खिलाफतके प्रश्नमें इस्लामको बड़ा धोखा पहुँचानेकी बात है। यदि ऐसे समयपर भी मुसलमान जान-मालकी कुरबानी करनेके लिए तैयार न हों तब तो उनमें धार्मिकताका लोप हो गया है, ऐसा ही कह सकते हैं। यदि ऐसा बुरा परिणाम आ जाये तो मुझे आश्चर्य नहीं होगा क्योंकि मैं संसारमें भ्रमण करता हुआ कलिकालकी महिमाको देख रहा हूँ। धर्मकी भावना हरेक जगह बहुत ही मन्द हो गई है और अनेक कार्य

१. कुछ खिलाफत कार्यकर्ताओंने कहा था कि इस सवालका सन्तोषजनक निपटारा न होनेपर सभी धार्मिक मुसलमानों द्वारा भारतसे अफगानिस्तानको हिजरत करनेकी बात भी सोची जा सकती है।

यहाँ गांधीजीका तात्पर्य शायद इसी सुझावसे है।

२. स्पष्ट हो यहाँ " हिन्दुओंको ”, के स्थानपर " मुसलमानोंको " होना चाहिए, हालाँकि इस पत्रके साधन-सूत्र महादेवभाईनी डायरीमें ऐसा ही दिया गया है।