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१५९. पत्र : सैयद फजलुर्रहमानको

२ मई, १९२०

ब्रिटिश मालका बहिष्कार करना' अंग्रेजोंको सजा देना है। में ब्रिटिश माल खरीदूँ, इससे ब्रिटिश राज्य जो अन्याय करता हो, उसमें शरीक नहीं हो जाता। परन्तु जब सरकार अन्याय कर रही हो, तब उसके साथ सहयोग करूँ तो सरकारके अन्यायमें हिस्से- दार बनता हूँ । इसलिए अन्यायी सरकारके साथ असहयोग करना धर्म हो जाता है। यदि प्रभावशाली मुसलमानोंकी भीरुता और हिन्दुओंकी उदासीनता के कारण आम मुस्लिम जनता असहयोग न कर सकी, तो उसका अनिवार्य परिणाम एक खूनी क्रान्ति होगी; - बशर्ते कि खिलाफतके प्रश्नका फैसला मुसलमानोंके पक्षमें न हुआ। परन्तु अगर उपर्युक्त दोनों वर्ग मुसलमान जनताको भावनाकी गहराईको समझें, तो वे असह- योगको पूरी तरह सफल बना सकते हैं और अभीष्ट परिणाम प्राप्त कर सकते हैं।

मो० क० गां०

[अंग्रेजीसे]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।

सौजन्य : नारायण देसाई


१६०. पत्र: मगनलाल गांधोको

२ मई, १९२०

मैंने कल महादेवसे अनायास पूछा कि तुम्हें मगनलालके सन्तापका कुछ कारण मालूम है? इसपर मोटरके बारेमें हुई बातचीतके सिलसिलेमें तुम्हारे उद्गार उसने मुझे बताये। फिर भी मैं इस समय उनमें से एकका भी जवाब नहीं दूंगा। तुम्हारे पत्रकी राह देखूंगा। आज तो तुम्हारा पत्र आना ही चाहिए था। अन्यथा मुझे तो जवाब ही क्या देना है? परन्तु तुम्हें शान्ति मिले, ऐसे वचन तो लिखूं ही किन्तु वह तुम्हारा पत्र आनेपर ही।

राधाकी बात तो लिख ही डालूँ। मुझे उसका विवाह नहीं करना है। परन्तु मैंने तुम्हारी चिन्ताको समझा, इसीलिए उसपर विचार किया और अपना निर्णय दिया। यदि अब उस लड़की के बारेमें तुम्हारा विचार दृढ़ हो गया हो और तुम संतोकको

१. जिसकी हिमायत खिलाफतके कुछ कार्यकर्ता, विशेषकर मौलाना हसरत मोहानी कर रहे थे।

२. देखिए “ भाषण : खिलाफतपर ", १९-३-१९२० की पाद-टिप्पणी १।