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पत्र: लालचन्दको

परखो, उसपर सम्यक् रूपसे मनन करो और फिर तुम सहज ही 'यंग इंडिया' के पृष्ठों- में प्राण फूंक दोगे। ताजे अंक में खुद अपने लेखोंको दोबारा पढ़नेपर देखता हूँ कि कई हिस्सों में वह जोर नहीं है जो आमतौरपर मेरे लेखोंमें हुआ करता है। खादी- सम्बन्धी लेख' सबसे अच्छा बन पड़ा है, परन्तु उसके आखिरी परेको देखने से मालूम होता है कि उसे लिखते वक्त या तो मैं आधी नींदमें रहा होऊँगा या लापरवाही बरत रहा होऊँगा। 'किसीके उसे इस्तेमाल करनेके लिए अनिच्छुक होनेपर भी' (Even if one is disinclined to use it) इसके तुरन्त बाद यह वाक्य आता है : 'कोई उसे इस्तेमाल करनेके लिए इच्छुक न हो, तो भी' (Even if one is inclined • to use it ) । "इस्तेमाल" शब्द चार पंक्तियोंमें चार बार आया है। ऐसे घटिया वाक्य में कभी भी किसी अच्छे लेखमें नहीं चलने दूंगा। परन्तु तुमने चलने दिया। हमने ऐसा किया, इसका मुझे कोई दुःख नहीं, क्योंकि जबतक मुझे तुम्हारी शैलीके बारेमें भरोसा न हो जाये, तबतक अपनी बीमारी, सुस्ती या लापरवाहीकी सजा भुगतनी ही होगी।

अब असहयोगपर मेरा लेख लो। इसमें सामग्री तो सब ठोस है, लेकिन वह ठीक ढंगसे रखी नहीं गई है। मैं जानता हूँ कि मैंने उसे कितनी कठिन परिस्थितिम लिखा है, परन्तु इसी कारण मैं पाठकोंसे यह अपेक्षा नहीं कर सकता कि वे लापर- वाहीसे लिखे हुए लेखोंको दरगुजर कर देंगे। मेरा पहला लेख बहुत हदतक पठनीय है, लेकिन वही लेख अगर मैं सिंहगढ़में लिखता, तो कुछ दूसरे ही ढंगसे लिखा जाता। घोषणा-पत्र' मेरी पसन्दकी चीज है। उसकी शैली सुन्दर है, अभिव्यक्ति स्पष्ट है और मेरी सारी बातें बहुत सुन्दर और सुगठित ढंगसे सामने आ पाई हैं। मैं इसे और भी अच्छे ढंग से लिख सकता था, परन्तु जैसा है, वैसा भी वह लेख अच्छा है।

अब विचारके लिए मैंने तुम्हें काफी सामग्री दे दी है। मुझमें जो उत्तम हो, उसे लेनेके लिए तुम मेरे पास आये हो। तुममें जो उत्तम हो, वह देशको दो और हर नये हफ्ते में अपने कामका स्तर पिछले हफ्तेसे ऊपर उठाओ। ऐसा करनेके लिए तुम्हें स्वदेशीका अध्ययन करना होगा | दत्त, राधाकमल मुखर्जी, बैरो और हिन्दुस्तानके उद्योगोंपर लिखनेवाले अन्य सभी लेखकोंकी चीजें पढ़ डालो। तुम्हें सरकारी रिपोर्ट (ब्ल्यू बुक्स) और आँकड़ोंके सार पढ़ते रहना चाहिए और हर हफ्ते आँकड़ों और तथ्योंसे पाठकोंको सराबोर करते रहना चाहिए। मुझसे यह मत कहना कि तुम्हारे पास पुस्तकालय नहीं है। अहमदाबाद जाकर सारे पुस्तकालय छान डालो और जो जरूरी चीजें मिल सकें उन्हें ढूंढ़ निकाली। इसी प्रकार हिन्दी और प्रादेशिक भाषाओंके प्रश्न- को समझने के लिए इंग्लैंडमें नॉर्मन-युगमें लोगोंको फ्रेंचसे जो मोह हो गया था उसका इतिहास, कुछ अंग्रेजी-प्रेमी लोगोंने किस प्रकार अंग्रेज राष्ट्रको बचाया उसकी कहानी, रूसमें सिर्फ एक प्रोफेसरकी मेहनत और लगनके कारण किस तरह रूसकी शिक्षा पद्धति-

१. देखिए “खद्दरका उपयोग ", २८-४-१९२०।

२. देखिए " असहयोग ", २८-४-१९२०।

३. देखिए " ऑल इंडिया होमरूल लीगके सदस्योंसे", २८-४-१९२०।