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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जितना कमा सकता है, उसकी अपेक्षा कहीं अधिक कमा सकता है। मतलब यह कि यहाँकी शिक्षा के परिणामस्वरूप उसमें अधिक आत्म-विश्वास आता है। हाँ, मैं यह मानता हूँ कि आश्रम में बालकोंको बार-बार यह सिखाया जाता है कि शिक्षा चरित्र निर्माणका साधन है, धन कमाने का नहीं। आश्रम में हम बालकोंको धनकी लालसासे निरन्तर विमुख करते रहते हैं। मैं आपको यह सलाह दूंगा कि गिरधारीपर किसी विशेष संस्थामें जानेके लिए दबाव न डालें वरन् उसे जहाँ वह चाहे वहीं रखें। उसमें अपना रास्ता खुद चुनने की पूरी योग्यता है।

[अंग्रेजीसे]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।

सौजन्य : नारायण देसाई

१५८. पत्र: लालचन्दको

२ मई, १९२०

प्रिय लालचन्द,

२८ अप्रैलके 'यंग इंडिया' में तुम्हारी सब टिप्पणियाँ पढ़ गया। पहली काफी अच्छी है, दूसरी बुरी नहीं है, यद्यपि कमजोर है और उसमें प्रवाह नहीं है। तीसरीकी सामग्री अच्छी है, परन्तु विवेचनका ढंग अच्छा नहीं। चौथीकी सामग्री और ढंग, दोनों खराब हैं। सामग्री खराब इस तरह है कि तुम्हें जानना चाहिए कि कांग्रेस शिष्टमण्डल विलायत नहीं जा रहा है और अगर तुम यह बात नहीं जानते थे, तो तुम्हें पता लगा लेना चाहिए था। इसका ढंग इस तरह खराब है कि यह 'यंग इंडिया' की शैली- में नहीं लिखी गई है। पाँचवीं टिप्पणी सामग्रीकी दृष्टिसे बहुत अच्छी है, परन्तु एक महिलाके साथ किये गये दुर्व्यवहारके महत्त्वपूर्ण मामलेके साथ तुमने शायद ही न्याय किया है। मेरी आलोचनाका उद्देश्य तुम्हें डरा देना नहीं है । इसका मात्र उद्देश्य तुम्हें इस बातकी चेतावनी दे देना है कि भविष्य में तुम विषयके चुनाव और उनके विवेचनके ढंगमें अधिक सावधानी बरतो । सिर्फ विषयोंकी विविधता न रहनेसे 'यंग इंडिया' दोषपूर्ण नहीं दिखाई देने लगेगा। लेकिन अगर चुने गये विषयमें मौलिकता न हो, जो जानकारी दी जाये वह यथातथ्य न हो और विवेचनका ढंग जोरदार न हो तो यह अवश्य घटिया दिखाई देगा। और अगर तुम अपनी टिप्पणियोंमें उपर्युक्त गुण लाना चाहते हो तो तुम्हें गहरा अध्ययन करना पड़ेगा और तभी तुम्हारे भीतर प्रबुद्ध आत्मविश्वास जगेगा। अतएव इसकी चिन्ता मत करो कि विषयोंकी संख्या कितनी है। तिर्फ गहराई में उतरनेको परवाह करो। अपने विषयको बाहरसे परखो, भीतरसे

१. यंग इंडियाके सम्पादकीय विभागके एक सदस्य।