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पत्र: बी० कृपलानीको

है, अब तो उनके कहने में बहुत देर हो गई है, और शायद अच्छा ही हुआ। यहाँ पूरी तरह संगठन किये बिना हमारा वहाँ जाना बिलकुल बेकार होगा -- बल्कि उससे भी बुरा'।

[अंग्रेजीसे]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।

सौजन्य : नारायण देसाई

१५६. पत्र: एस्थर फैरिंगको

रविवार [२] मई, १९२०

रानी बिटिया,

मुझे नहीं मालूम कि तुम [ बम्बई ] आ गई हो या नहीं। अगर आ गई हो तो सिंहगढ़ अवश्य आओ। यह बहुत ही रमणीक स्थान है। पूनासे ताँगे में यहाँ आया जा सकता है। यदि मुझे [ तुम्हारे आनेका] पता चल जाये तो मैं आसानी से सारा प्रबन्ध कर दूंगा । परन्तु मैं जानता हूँ कि तुम स्वयं ही सब प्रबन्ध कर सकती हो । सिंहगढ़ पूनासे १३ मील है और ताँगेवाले वहाँसे कमसे-कम पाँच रुपया भाड़ा लेते हैं। कभी-कभी इससे कुछ अधिक भी।

सस्नेह,

बापू

[अंग्रेजीसे]

माई डियर चाइल्ड

१५७. पत्र : बी० कृपलानीको

२ मई, १९२०

मैं मानता हूँ, आपका पौत्र आश्रम में रहकर जैसी अच्छी प्रगति कर रहा है वैसी अन्यत्र नहीं कर सकता था। जिस बालकके सम्बन्धमें ऐसा नहीं मानूंगा उसे कभी आश्रम में नहीं रखूंगा। मेरे विचारसे आश्रमकी शिक्षा एक ऐसी सर्वतोमुखी शिक्षा है जिसे पूरा करनेपर कोई भी बालक उतने ही वर्ष किसी अन्य स्थानपर शिक्षा प्राप्त करके

१. देखिए “मैं विलायत क्यों जाऊँ? ", २५-४-१९२० ।

२. यह पत्र स्पष्टतः सिंहगढ़ से लिखा गया था, जहाँ गांधीजी २९ अप्रैलसे ४ मईतक ठहरे थे और इन तारीखोंमें पड़नेवाला एकमात्र रविवार २ मईको था।

३. देखिए पिछला शीर्षक।

४. जे० बी० कृपलानीके पिता।

५. गिरधारी, जे० बी० कृपलानीका भतीजा।