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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पच्चीस श्लोकों में से मैंने पाँच ही चुने हैं। क्या मैं तुमपर फिर इनकी करके देवदासको भेजनेका भार डाल सकता हूँ? बड़ी इच्छा है कि इस सुन्दर कला- कृतिकी एक संक्षिप्त आवृत्ति तुम्हारे लिए तैयार कर सकूंँ।

आज भी मेरी तबीयत अच्छी नहीं है। अब भी मुझे बिस्तर में ही पड़े रहना है। तुम्हारी याद अब भी बहुत आती है, नींदमें भी। फिर अजब नहीं कि पंडितजी तुम्हें भारतकी महाशक्ति कहते हैं। तुमने उनपर जादू कर रखा होगा। अब वही जादू तुम मुझपर आजमा रही हो। लेकिन दो कोयलोंके कूकनेसे ही ऐसा नहीं माना जा सकता कि वसन्त आ गया । यदि तुम सचमुच महाशक्ति हो तो मनसा, वाचा और कर्मणा भारतकी दासी बनकर भारतको अपना दास बना लोगी।

दीपकसे तो मैं तुम्हें और पंडितजी, दोनोंको पत्र नहीं लिखवा सकता। इसलिए पंडितजीके नाम लिखे उसके एक पत्रसे ही तुम्हें सन्तोष करना होगा। वह कहता है, 'मैं माताजीको रोज क्यों पत्र लिखूं, जब कि वे मुझे नहीं लिखतीं । इसपर मैंने बुराई- के बदले भलाईकी सीख दी। यह भी कहा कि तुमने शायद पत्र लिखा हो, लेकिन • अभीतक ढाकमें आया न हो। कल मैं पूरा भरोसा करके बैठा था कि तुम्हारा कोई पत्र अवश्य आयेगा, लेकिन आया नहीं। आजका दिन भी खाली जा रहा है। क्या बात है, समझ नहीं पा रहा हूँ। लेकिन इतना जानता हूँ कि तुम्हारी ओरसे कोई चूक नहीं हुई होगी। यह तो कमबख्त डाककी ही कारस्तानी है।

'टाइम्स ऑफ इंडिया' से भारतीय संगीत विषयक दो लेखोंकी कतरनें भेज रहा हूँ। शायद तुमको ये दिलचस्प लगें । तुम अपना आलस्य छोड़ दो तो सारे भारतको संगीत-लहरीसे गुंजा दो। इसके लिए तुम्हारा गाना ही काफी नहीं । तुम चाहो तो तुम्हारी ही तरह सारा देश गुनगुनाने लग सकता है। परन्तु इसके लिए लगन और मेहनत चाहिए- भारतको अपनी संगीत प्रतिभा अर्पित करनेका संकल्प चाहिए। अगर तुम देवदासके लिए इन इलोकोंकी नकल करनेकी तकलीफ कर रही हो तो मेरा खयाल है उसके लिए भजनकी भी नकल कर दोगी।

कल भी तिलक महाराज हमें देखने आये थे। उन्होंने साफ कहा कि उनमें मेरी तरह सहिष्णुता नहीं है और वे ईंटका जवाब पत्थरसे देने में विश्वास करते हैं। उन्होंने श्रीमती बेसेंटकी बड़ी तीव्र आलोचना की थी। मैंने दबी जवान उसीपर कुछ आपत्ति की थी तो उत्तरमें उन्होंने यह बात कही। तुमने शायद यह आलोचना नहीं पढ़ी होगी। मैंने भी यहीं पढ़ी है। उसमें तो उन्होंने श्री खापर्डेका श्रीमती बेसेंटको पूतना मौसी कहनेका भी औचित्य ठहराया है। वे जो-कुछ कह रहे थे, बहुत ही रोचक ढंगसे साफ-साफ कह रहे थे, जिससे मनको बड़ी ताजगी मिल रही थी।

कुमारी फैरिंग अभीतक नहीं आई। जहाजका टिकट लेनेके लिए बम्बईमें रहनेकी जरूरत न हो, तो मैंने उसे सिंहगढ़ आतेको निमन्त्रित कर दिया है। आज तुम्हारा पत्र पानेकी अन्तिम आशा भी अब जाती रही, क्योंकि डाकिया सिर्फ थोड़ेसे अखबार ही लेकर आया है। देवदासने लिखा है कि पंडितजी---माफ करना, मेरा मतलब माल- वीयजीसे है।--फिर सोच रहे हैं कि मुझे इंग्लैंड जाना चाहिए। लेकिन मेरा खयाल