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१५४. टिप्पणियाँ
जलियाँवाला बाग-स्मारक और लोक-जागृति

पिछले एक वर्षके दरमियान लोक-जागृतिमें कितनी वृद्धि हुई है, यदि हम यह जानना चाहे तो इसका ज्ञान हमें जलियाँवाला बाग-स्मारक कोषमें विभिन्न स्थानोंसे प्राप्त हुई रकमोंसे हो सकता है। नीचे दी गई सूचीसे पता चलेगा कि जहाँ-कहीं प्रयत्न किया गया है वहाँ छोटासा गाँव भी अपना सहयोग देनेमें शहरसे पीछे नहीं रहा है। हमें कितने ही ऐसे पत्र प्राप्त हुए हैं जिनमें यह बताया गया है कि अमुक स्थानपर गरीबसे-गरीब व्यक्तियोंने भी अपनी अमुक आदतोंको छोड़कर उनपर खर्च होनेवाली रकम इस कोषमें दी है; अनेक स्थानोंपर स्वयंसेवक सारा दिन जगह-जगह और घर- घर पैसेकी भीख मांगते हुए भटके हैं। श्री महादेव देसाई जिन गाँवों घूमे हैं वे गाँव उनकी जानकारीके अनुसार एक हजारसे अधिक की बस्तीवाले नहीं हैं और प्रत्येक गाँवमें, स्मारक-कोषमें अपना हिस्सा देनेवाले केवल उच्च वर्ग तथा शिक्षित वर्गके लोग ही नहीं हैं, बल्कि साधारण और अशिक्षित लोग भी हैं। अर्थात् चन्दा देनेवालोंमें ब्राह्मणों और वैश्योंके उपरान्त सुनार, बढ़ई, लुहार, तेली तथा कोली भाई भी हैं। एक गाँव में तो चन्दा देनेवालों में बड़ा भाग मुसलमानोंका ही है। फिर बहनोंने भी चन्दा दिया है। श्री महादेव देसाईने बताया है कि पैसे इकट्ठे करने में उन्हें किसीपर तनिक भी दबाव नहीं डालना पड़ा। वे संक्षेपमें चन्दा एकत्रित करनेका कारण बताते, अनेक स्थानोंपर कांग्रेस समितिकी रिपोर्टमें वर्णित जलियाँ- वाला बाग आदि स्थानोपर हुई घटनाओंके बारेमें समझाते और लोग तुरन्त ही खुशीसे अपनी सामर्थ्यके अनुसार दे देते।

गाँवोंमें भ्रमण करते हुए श्री देसाईसे एक सज्जनने विनोदमें जो बात कही थी वह यहाँ उद्धृत करने योग्य है। उक्त सज्जनने कहा: "भाई, यह तो ऐसी बात है कि खुद तो दुबली' खरमट बीने तब भी हवलदारको घूघरी देवे। यह देशकार्य है इसलिए दिये बिना कैसे चल सकता है ? यह कहावत बहुत मार्मिक है; इससे हमारे किसानोंकी वर्तमान दयनीय स्थितिका पता चल जाता है। "खरमट अर्थात् वे दाने जो खलिहानसे अनाज उठा लेनेके बाद जहाँ-तहाँ पड़े रह जाते हैं। इतना अर्थ देनेपर कहावतका अभिप्राय स्पष्ट हो गया होगा। हमारे किसान वर्गकी वर्तमान

१. यहाँ नहीं दी गई है।

२. प्रकाशित रिपोर्ट में जलियाँवाला बागमें लोगोंको कोड़े मारे जाने तथा घायल व्यक्तियोंके चित्र दिये गये हैं।

३. दक्षिण गुजरातमें मजूरी करने वाली 'दुबला' जातिको स्त्री।

४. उबला हुआ ज्वार या बाजरा।