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'नॉन-कोऑपरेशन'

विदुषी महिला श्रीमती बेसेंटने असहकारकी कड़ी आलोचना की है। 'टाइम्स ऑफ इण्डिया' में एक लेखक और स्वयं सम्पादकने टीका की है। श्रीमती बेसेंटने भारतकी जो सेवा की है वह इतनी मूल्यवान है, उन्होंने जो उद्यम किया है वह इतना महान् है और भारतके प्रति उनका प्रेम इतना सुन्दर है कि उनके लेखोंकी आलोचना करने अथवा उनसे अपना मतभेद प्रगट करनेमें मुझे संकोच ही होगा। लेकिन हम जिन्हें बुजुर्ग मानते हैं उनके प्रति आदरका भाव रखते हुए भी हम मतभेद रख सकते हैं, इस तत्त्वको मैंने हमेशासे स्वीकार किया है, इसीसे में इस समय भी अपना मतभेद प्रगट करनेकी हिम्मत कर रहा हूँ।

तीनों लेखकोंको यह बड़ा भारी भय है कि असह्कारसे खून-खराबी हुए बिना नहीं रह सकती। यह तो हम नहीं कहते कि खून-खराबी कदापि नहीं हो सकती, लेकिन मेरे खयालसे खून-खराबी न हो इसके पूरे उपाय कर लेनेके बाद हमें अपने कार्यों में लगे रहना चाहिए। खून-खराबी करनेवाले असहकारकी ही राह देखते हुए बैठे हैं, अगर ऐसी कोई बात हो तो हमें अवश्य ही असहकारको स्थगित रखना चाहिए। मेरी तो ऐसी मान्यता है कि मुसलमान इस बातको इतनी अच्छी तरह समझ गये हैं कि खून-खराबीको रोकने में ही उनकी विजय निहित है। वे जानते हैं कि असहकारका खून-खराबीके साथ एक क्षणके लिए भी निबाह नहीं हो सकता।

कोई कह सकता है कि सारे भारतमें खून-खराबीको भला कहीं रोका जा सकता है? उसका जवाब यही है कि जब सेनामें कोई अनहोनी बात हो जाती है तब सेना भंग कर दी जाती है। हमारे एक हो जानेपर तो हममें खून-खराबी आदि दुर्घ- टनाओंको रोकनेकी शक्ति आ ही जानी चाहिए। उस शक्तिके प्राप्त होनेतक हमसे भूलें होंगी, हमें भूलोंको सुधारना पड़ेगा, यह सब मैं मानता हूँ। लेकिन मैं यह जानता हूँ कि जनताको अपने ऊपर नियन्त्रण रखना सीखना ही चाहिए और मेरे खयालसे उसके लिए यह एक महत्त्वपूर्ण अवसर है।

इन लेखकोंने यह मान लिया है कि असहकारका प्रचार करनेवाले अपने कार्य से परिचित नहीं हैं। ऐसा माननेका कोई कारण नहीं है। वे असहकारकी सीढ़ीपर छलाँग मारकर नहीं चढ़ना चाहते। यदि वे पग-पगपर अपने मार्गको देखते हुए चढ़ेंगे तो गिरनेका भय कम होगा।

असहकारमें जोखिम तो है ही। लेकिन अन्य कोई उपाय नहीं है। यदि खिलाफत- का अन्यायपूर्ण निर्णय असह्य हुआ तो विरोधका कोई-न-कोई रास्ता चाहिए। यदि असहकार रूपी हथियार भी न हो तो जनताके पास सिर्फ खून-खराबी ही [करनेको] रह जाती है, और इसका उपचार तो रोगसे भी भयंकर है क्योंकि उद्देश्य क्रोधके लिए क्षोभकी तलाश करना नहीं वरन् खिलाफतके मामलेमें न्याय प्राप्त करना है। खून- खराबीसे न्याय मिलनेवाला नहीं है और इसलिए मुझे तो लगता है कि असहकारके सिवा दूसरा कोई अस्त्र है ही नहीं।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, २-५-१९२०