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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सुधारोंकी कीमत उपर्युक्त वस्तुओंकी अपेक्षा कम मानता हूँ। मेरे कहनेका आशय यह नहीं है कि उक्त सुधार एक ओर रख देने जैसी चीज़ हैं। लेकिन मैं उन्हें उससे बड़ा स्थान देनेके हकमें नहीं हूँ जिसके वे योग्य हैं। यदि आज हमारे हाथमें पूरी राजसत्ता आ जाये तो भी यदि हम स्वदेशीको नहीं समझते, हिन्दू-मुस्लिम एकताके महत्त्वको नहीं पहचानते और हमारा कारोबार अंग्रेजी भाषामें चल सकता है--ऐसे मोहमें पड़े रहते हैं तो उनका उपयोग हमारी स्वतन्त्रता छीन लेनेकी दिशामें हो सकता है। मुझे यह बात सष्ट दिखाई देती है। शासनमें सुधार साधन है, साध्य नहीं। स्वदेशी इत्यादि साधन और साध्य दोनों हैं।

इसके अतिरिक्त में यह भी कहना चाहता हूँ कि जिस पद्धतिसे में काम करता हूँ उससे फल भी जल्दी और अधिक प्राप्त होता है। अपने प्रत्येक कार्य में सत्यका ही दृढ़तापूर्वक प्रयोग करना, सत्यपर पूरी आस्था रखना और सत्यको हम जिस रूपमें पहचानते हैं उस रूप में उसका आचरण करते हुए किसीसे भी न डरना मेरी पद्धति है। इन विचारोंको स्वीकार करनेसे जीवन में ऐसा परिवर्तन आता है कि हम तत्क्षण स्वाय बन जाते हैं। दूसरोंपर निर्भर न रहकर हम तुरन्त आत्मनिर्भर हो जाते हैं। इसलिए मुझे उम्मीद है कि मैं सत्याग्रहके इस तत्त्वको लीग द्वारा अपनाये जानेकी दिशा में अधिक से अधिक प्रयत्न करूंगा। कानूनकी सविनय अवज्ञा करनेके आन्दोलन में लीगको शामिल करनेका मेरा इरादा नहीं है। यह तत्त्व अभी व्यापक नहीं हुआ है और कानूनकी सविनय अवज्ञाके सूक्ष्म महत्त्वको अभी देशने नहीं समझा है, ऐसा मुझे लगता है। इसलिए मैं चाहूँगा कि सविनय अवज्ञा सम्बन्धी मेरे विचारोंसे सदस्य न घबरायें।

मैं लीगके सदस्योंके सम्मुख अपने विचारोंको विस्तारसे प्रस्तुत करनेके अन्य अवसरकी तलाश में रहूँगा। इस बीच में प्रत्येक सदस्यसे उपर्युक्त विषयोंके सम्बन्ध में उसके विचार जानना चाहूँगा। मैंने जो कदम उठाया है उसकी योग्यता-अयोग्यताके बारेमें सभी अपनी राय देंगे ऐसी मुझे उम्मीद है।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, २-५-१९२०

१५३. 'नॉन-कोऑपरेशन'

अब चूँकि 'नॉन-कोऑपरेशन' का विचार अपना असर दिखाने लगा है इसलिए जिस तरह मुझे "पैसिव रेजिस्टेन्स' के लिए एक शब्द खोजनेकी आवश्यकता महसूस हुई थी उसी तरह 'नॉन-कोऑपरेशन' के लिए भी मैं एक ऐसे शब्दकी जरूरत महसूस करता हूँ जिसे सब लोग समझ सकें। तत्काल तो 'असहकार' शब्द सूझता है, लेकिन अन्य कोई अच्छा शब्द ढूंढ़ निकालने में मैं पाठकोंकी मदद चाहता हूँ।

१. बादमें गांधीजी द्वारा इस लेखमें प्रयुक्त असहकार' शब्द ही रूद हो गया। हिन्दीमें ' नान-कोऑपरेशन' के लिये 'असहयोग' शब्द चला। हमने दोनोंका उपयोग किया है।