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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

४. शौकत अलीके भाषणसे' में नहीं घबराया; क्योंकि मुझे लगता है कि उन्होंने जिस भावसे प्रेरित हो भाषण दिया है उसे में अच्छी तरह समझ सकता हूँ।

निस्सन्देह, यह बात मैं स्वीकार करता हूँ कि जिस भावसे मैं असहकार को देखता हूँ उस भावसे सब मुसलमान नहीं देखते। लेकिन यह बात उन्हें स्पष्ट रूप से समझा दी गई है कि असहकारके साथ-साथ हिंसा हो ही नहीं सकती, और अगर मुसलमान भाई असहकारको द्वेष-भाव से प्रेरित होकर भी अपनायें तो भी उससे हमें शुभ परिणामकी उपलब्धि हो सकती है और हम हिंसा से छुटकारा पा सकते हैं। सब अच्छे कार्योंका, भले ही वे किसी भावसे प्रेरित होकर क्यों न किये जायें, थोड़ा-बहुत शुभ परिणाम अवश्य होता है। जो व्यक्ति भयसे अथवा लज्जासे प्रेरित होकर सत्य अथवा संयमका पालन करता है उसे भी उसका स्थूल लाभ तो हो ही सकता है- सत्य- कार्यकी महिमा ही ऐसी होती है।

आपके मनमें जैसो शंका उठी है वैसी ही दूसरोंके मनमें भी उठी होगी, इसलिए आपके पत्रको 'नवजोवन' में प्रकाशनार्थ भेज रहा हूँ ।

मोहनदासके वन्देमातरम्

[गुजरातीसे]

नवजीवन, ९-५-१९२०

१५२. मैं होमरूल लीगमें क्यों शामिल हुआ हूँ?

होमरूल लीगके सदस्योंके प्रति, इसके पहले कई मित्रोंने कितनी ही बार मुझसे होमरूल लीगमें शामिल होने- का आग्रह किया था लेकिन तब मैं उसमें शामिल नहीं हुआ। उसका एक कारण यह भी था कि राजनैतिक विषयोंमें सिर्फ राजनैतिक दृष्टि से मेरा भाग लेना सम्भव नहीं था, आज भी मैं ऐसा नहीं करता; तथापि इस बार मुझसे जो आग्रह किया गया वह पहलेके आग्रहोंसे भिन्न था । एक तो उस समयतक लोग मेरे विचारोंसे आज जितने परिचित हैं उतने परिचित नहीं थे। दूसरे गत कांग्रेस अधिवेशनमें मैंने देखा कि मेरा कांग्रेसके पिछले अधिवेशन-जैसा चुप रहना सम्भव नहीं है। मुझे लगा कि कितने ही विषयोंपर मुझे अपने विचार जनताके सामने रखना आवश्यक है और तब मैंने कांग्रेस अधिवेशन में ठीक-ठीक भाग लिया। उसका मुझे कोई पश्चात्ताप भी नहीं है।

१. मद्रासमें १७ अप्रैलको खिलाफत सम्मेलनके अध्यक्ष के रूप में। गांधीजीको लिखे अपने पत्र में जमशेदजी मेहताने शिकायत की थी कि शौकत अहोने “असहकार और “ अहिंसा " की जो परिभाषा की है वह चौंकानेवाली है।

२. २८ अप्रैल, १९२० को गांधीजी अखिल भारतीय होमरूल लीगके सदस्य बने थे।

३. अमृतसर अधिवेशन, दिसम्बर १९१९।