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पत्र: सरलादेवी चौधरानीको

कि अगर पखवाड़े-भरमें जगदीशका' विवाह सम्पन्न या स्थगित हो जाये तो तुम इस सीमाका निर्वाह करके आ जाओ। अगर पंडितजीको भी आनेपर राजी कर सको तब तो बात ही क्या है। उन्हें आश्रमके जीवनको देखना और रहकर अनुभव करना चाहिए।

सुबह तिलक महाराज हमें देखने आये थे। साथमें उनके लड़के और दामाद भी थे। बातचीत बिलकुल औपचारिक हुई।-

दीपक ठीक है। उसे यह जगह पसन्द आ गई जान पड़ती है। उसकी रुचियाँ बड़ी सुघड़ हैं और उसे कोई बात समझा-सिखा पाना भी बहुत आसान है। अगर उससे कुछ लिखा सका तो इसके साथ ही भेज दूंगा।

रेवाशंकरभाई आज सुबह आये। साथ में कुछ बड़े-अच्छे आम ले आये थे। उनमें हिस्सा बँटाने के लिए तुम तो यहाँ थीं नहीं, इसलिए मनको कष्ट हुआ। आज सुबह, हम जिस समय आमतौरपर उठते हैं, उसी समय उठा, लेकिन फिर सो गया। मैंने सूर्योदय नहीं देखा। तुम यहाँ होती तो मैं जानता हूँ कि सूर्यदेवके रथका आगमन देखनेको अवश्य ही मुझे बाहर खींच ले जातीं।

पादशाह 'ईस्ट ऐंड वेस्ट' में लिखते रहे हैं। कतरन तो शायद, जब हम लोग साथ थे, तभी आ गई थी। उसके आधारपर मैंने एक लेख बोलकर लिखा दिया है। वह किसी हदतक अच्छा ही बन पड़ा है। तुम भी इस बात से सहमत होगी।

और अब तुमसे एक चीज माँगूँगा। मैं जानता हूँ, तुमने मुझे बहुत कुछ दिया है। लेकिन जैसे-जैसे प्राप्त होता गया है, वैसे-वैसे भूख भी बढ़ती गई है। तुमने कहा कि आश्रम में काम करनेमें तुमको संकोच होता है। क्या तुम वहाँ घरेलू काम-काज करना शुरू करके इस संकोचके भावसे छुटकारा पानेकी कोशिश नहीं करोगी? अगर सिर्फ मेरी ही खातिर तुम ऐसा करो तब भी कोई हर्ज नहीं। यहाँ हमारे दृष्टिकोण में परिवर्तन होनेका सवाल नहीं उठता। सवाल सिर्फ अपनी अनिच्छापर काबू पानेका है। तुम महान् हो, नेक हो, लेकिन जबतक तुममें घरेलू काम-काज करनेकी क्षमता नहीं आती, तबतक तुम स्त्रीके रूप में पूर्ण नहीं हो सकतीं । तुमने औरोंको इसका उपदेश दिया है। अत: जब लोगोंको यह मालूम होगा कि तुम्हारी उम्र और हैसियतकी महिला भी घरेलू काम-काज करनेमें बुरा नहीं मानती तो तुम्हारे उपदेशका ज्यादा असर होगा।

सस्नेह,

तुम्हारा,

विधि-प्रणेता

[अंग्रेजीसे] महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।

सौजन्य : नारायण देसाई

१. सरलादेवीका ज्येष्ठ पुत्र जिसका विवाह १९-५-१९२० को सम्पन्न हुआ था।

२. यहाँ मूलको सुधारकर अनुवाद किया गया है।

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