खयाल उसे आता है? आश्रम में मकान बनानेका काम अभीतक चल ही रहा है। आशा है, किसी दिन तुम भी उसे देख सकोगी और उसके निर्माण में तुम्हें जितना हाथ बँटाना चाहिए उतना बँटा सकोगी।
मेरा जीवन तो सदाकी भाँति खूब व्यस्त है। जिसे मैं अपना कह सकूं, ऐसा एक क्षण भी नहीं होता।
देवदास बनारसमें है। वहाँ वह अपनी हिन्दीकी पढ़ाई पक्की कर रहा है। हरिलाल व्यापारमें आगे बढ़ रहा है। मैं नहीं जानता कि आखिरको वह करेगा क्या।
सस्नेह,
तुम्हारा,
भाई
[पुनश्च:]
भाई कोटवालको बहुत समय से नहीं देखा है। उनका कोई समाचार भी नहीं मिला है। परांगजी देसाई श्रीमती गांधीके भाईके साथ हो गये हैं। मेढ़' कुछ नहीं कर रहे हैं। छगनलाल हिसाब-किताब देखता है। मगनलाल मुख्य व्यवस्थापक है। उसके बच्चे अब बड़े हो गये हैं। कहते हैं, प्रभुदासको क्षय-रोग है। छगनलालकी पत्नी शरीरसे बहुत कमजोर तो है ही। कृष्णदासकी तन्दुरस्ती भी बहुत अच्छी नहीं रहती। इमाम साहब सारी खरीद-फरोख्त की देख-भाल करते हैं। उनकी पत्नी आश्रमके लिए सिलाईका बहुत सारा काम करती हैं। तुम जिन लोगोंको जानती हो, उन सबकी गतिविधिका मैंने काफी वर्णन कर दिया।
भाई
[अंग्रेजीसे] महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।
सौजन्य : नारायण देसाई
१४९. पत्र: सरलादेवी चौधरानीको
१ मई, १९२०
इस समय शामके लगभग पाँच बज रहे हैं। मैंने अभी-अभी बिस्तर छोड़ा है। कल रात सरमें बहुत सख्त दर्द था और ११ बजेतक अचेत-सा पड़ा रहा। उसके बाद अच्छी नींद आई। अब सरदर्द नहीं है, लेकिन मैं अभी एक फर्लांग भी नहीं चल सकता। फिर भी, तुमसे कहूँगा कि मेरे बारेमें चिन्ता न करो। मैंने सोचा कि तुमको अपनी दशासे अवगत करा दूं--और किसी कारण से नहीं तो इस कारण से
१. अहमदाबादके सुरेन्द्रराय मेढ़, दक्षिण आफ्रिका गांधीजीके सहयोगी।
२. छगनलाल गांधीके पुत्र।