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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हूँ। लेकिन मुझे अधिक जाननेपर उन्हें मालूम हो जाता है कि मेरे पास 'मेरा आग्रह ' जैसी कोई चीज नहीं है। मुझे न तो धनकी आकांक्षा है और न आदर-सम्मानकी ही। धनसे ऊबकर मैंने उसका त्याग किया। प्रभु मेरे मित्रोंकी मारफत मेरी आवश्यकता- ओंकी पूर्ति करता रहता है। सम्मान तो मुझे अपनी अन्तरात्मासे इतना भरपूर मिलता है कि मेरे पास बाहरी सम्मानके लिए कोई अवकाश ही नहीं रहता। तो फिर किस कारण मेरे मनमें अपनी बातके आग्रहका लोभ हो? हमारा दृष्टिकोण ही भिन्न है, इसलिए हममें मतभेद हो जाता है। आपकी मान्यता है कि फिलहाल ही मजदूरोंको बहुत ज्यादा मिलता है तथा उन्हें जो और दिया जायेगा उसका वे सदुपयोग नहीं करेंगे। मैं मानता हूँ इस समय उन्हें बहुत ही कम मिलता है। उनके वेतनमें जिस वृद्धिकी मैंने माँग की है, उससे उनकी समस्त आवश्यकताओंकी पूर्ति हो जायेगी सो भी मैं नहीं मानता और उन्हें अधिक जो-कुछ मिलेगा उसका वे दुरुपयोग ही करेंगे, इसे मैं सिद्धान्त रूपमें स्वीकार नहीं करता। फलतः मैंने बम्बईमें निर्धारित अधिक से अधिक दरकी माँग की है और उसमें मुझे तनिक भी अन्याय दिखाई नहीं देता। मैं तो आपसे कह भी चुका हूँ कि बम्बईकी मशीनोंके पीछे जो खर्च होता है उसकी खबर अगर मुझे पहले मिली होती तो हमने जब पंच नियुक्त करनेका निश्चय किया था तब बम्बईकी दरके साथ मुकाबला करनेकी बातको में कभी भी स्वीकार नहीं करता। इस बातका ध्यान रखना मेरा कर्त्तव्य है कि अहमदाबादके उद्योगको तनिक भी नुकसान न हो। और मैं देख सकता हूँ कि मजदूरोंको पूरे तीस रुपये दिल- वानेमें इस धर्मका पूरा-पूरा पालन होता है [उसका उल्लंघन नहीं होता]। लेकिन आप इस बातको नहीं देख पाते इसीसे मुझे दुराग्रही मानते हैं, पर मैं कैसे मानूं? मैं देखता हूँ कि हममें जो मतभेद है वह समझमें आ सकता है। आपके साथ सहमत होनेकी खातिर में अनेक कदम उठाने के लिए तैयार हूँ। लेकिन मजदूरोंके साथ अन्याय करके एक भी कदम भरनेको तैयार नहीं हूँ। मैंने आपको जो पत्र लिखा था उसमें अम्बालालभाईका बिलकुल भी हाथ नहीं है। मैं तो मानता हूँ कि उन्होंने आपको जो भी कहा है वह बिलकुल विशुद्ध मनसे कहा है, आपके सम्मानको हानि पहुँचाने के उद्देश्य से नहीं किया है और यदि मुझे ऐसा जान पड़ा तो पल-भरके लिए भी उनके साथ नहीं रहूँगा। मुझे तो जैसे उनका सम्मान प्रिय है उसी तरह आपका भी। मैं तो उस कार्य में भाग लेना चाहता हूँ जिसमें आपका कल्याण होता हो। अब भी मेरी आपसे यही प्रार्थना है कि जो दरें तय हो गई हैं उन्हें आप स्वीकार करें; और आपको इस समय अनसूयाबेन और भाई शंकरलाल-जैसे निर्मल कार्यकर्ता मिले हैं, उनकी सहायता से आप अहमदावादके उद्योगको उन्नत बनायें तथा इस तरह औरोंके लिये एक उदाहरण प्रस्तुत करें।

मेरी अपनी तबीयत फिलहाल बहुत खराब है, अन्यथा सीधा आपके पास चला आता। आप ही यदि बन पड़े तो सिंहगढ़ आयें और तनिक विश्राम करें। परेशान होनेका कोई कारण नहीं है।

१.३१ मार्चको गांधीजीने मिल-मालिकोंको लिखा था कि वे अपने मजदूरों को कुछ रियायतें दें।