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पत्र: मंगलदास पारेखको

हूँ; सब भाई हैं; ऐसा समझकर सबसे शिक्षा लो। सबकी सेवा करना। उचित समयपर मैं तुम्हें बम्बई ले जाऊँगा। अपनी लिखावटको सुन्दर बनाना। अक्षरोंको इतना सुन्दर बनाना कि वे छपे हुए लगें। मुझे नियमपूर्वक स्याहीसे साफ अक्षरोंमें लिखती रहना।

बापूके आशीर्वाद

[गुजरातीसे]

महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ५

१४७. पत्र: मंगलदास पारेखको'

सिंहगढ़

३० अप्रैल, [१९२०]

सुज्ञ भाईश्री मंगलदासजी,

आपका पत्र मिला। जिस समय यह मिला उस समय दोपहरके तीन बजे थे। इसका उत्तर तुरन्त ही लिख रहा हूँ। तथापि पहली तारीलको तो यह नहीं पहुँच पायेगा। मुझे लगता है कि आप अम्बालालभाईपर अकारण ही सन्देह करते हैं। मैंने तो, जब आपसे मिला था, उसी समय आपसे कहा था कि हमने अम्बालालभाईके साथ कुछ दरें निश्चित की हैं। मैंने [उस समय] इस सम्बन्धमें ज्यादा बातचीत नहीं की क्योंकि मेरा खयाल था कि मेरे वहाँ जानेके कारणसे आप परिचित होंगे। उनके साथ हुई बातचीत आपसे कुछ छिपानी तो थी नहीं और उसी तरह आपको सूचित कर देनेके बाद उनसे सलाह-मशविरा करनेकी बातमें भी मुझे कुछ अनौचित्य न जान पड़ा। जो मिलें सलाह-मशविरा करनेको राजी थीं उनके साथ मैंने सलाह- मशविरा किया। हड़तालको जितना सीमित किया जा सके उतना किया जाये, इस बातको मैंने उचित माना और अभीतक मानता हूँ। मैं आपको इस बातका आश्वासन कैसे दिलाऊँ कि मुझे जगत् में दूसरोंसे अपनी बात मनवानेका तनिक भी लोभ नहीं है। हाँ, न्यायकी बातको मनवानेका महान् प्रयत्न करता रहता हूँ और बहुधा में जो करता हूँ उसमें शुद्ध न्याय ही होता है। और न्यायकी जीत तो होती ही है। इसी- लिए लोग भ्रमवश यह मानने लगते हैं कि मैं उनसे अपनी बात मनवाना चाहता

१. अहमदाबादके मिल-मालिक। इन्होंने कोचरव-आश्रम स्थापित करनेमें गांधीजीको सहायता दी थी।

२. ३० अप्रैल, १९२० को गांधीजी सिंहगढ़में थे। पत्रमें मिल-मजदूरों और मिल-मालिकोंके नीच जिस झगड़ेकी चर्चा की गई है वह अप्रैल-मई, १९२० के दौरान हुआ था।

३. अम्बालाल साराभाई।