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१४५. पत्र: लाजरसको'

सिंहगढ़

३० अप्रैल, १९२०

मैंने अपने दो पुत्र दक्षिण आफ्रिकाको दे दिये हैं। वे जबतक चाहें वहाँ रह सकते हैं। इससे अधिक देनेकी मेरी शक्ति नहीं है। वहाँ तो जितने आदमी मिल सकें, उतनेकी जरूरत है, और इसी प्रकार पैसेकी भी।

[अंग्रेजीसे]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।

सौजन्य : नारायण देसाई

१४६. पत्र: निर्मलाको

३० अप्रैल, १९२०

तुम्हारे साथ बातचीत करनेके बाद इन दिनों मेरे मनमें तुम्हारे बारेमें बहुत विचार चलते रहते हैं। मेरी समझमें यदि तुम चाहो तो बहुत कुछ कर सकती हो। लेकिन तुम्हारा मन स्थिर होना चाहिए। जो कुछ तुम सुनो अथवा पढ़ो उसपर तुम्हें विचारपूर्वक अमल करना चाहिए। तुम्हारी विचारशक्ति मन्द है, यह बात मैं तुम्हारी नोटबुकसे समझ पाया हूँ। अब मेरी सलाह यह है कि तुम जितना पढ़ो उसका अर्थ समझकर उसपर विचार करो। और अच्छा लगे तो उसपर अमल करो। ध्यान- पूर्वक 'नवजीवन' पढ़ो। गीताजीके प्रत्येक श्लोकके अर्थपर विचार करो, तभी तुम आगे बढ़ सकोगी। आश्रममें ही मरना है--ऐसा निश्चय करके आश्रमके प्रत्येक कार्य- । को समझ लो। आश्रमके जीवनमें तुम्हारी सेवाओंका अच्छेसे-अच्छा उपयोग कहाँ हो सकता है, यह देखकर तदनुरूप काम करो। चि० मगनलालसे मिलती रहना और उससे सब जानकारी प्राप्त कर लेना। उससे काम माँगना। मैं नादान हूँ, दूसरोंके साथ बातचीत कैसे करूँ यह सोचकर तुम अपनी कोठरीमें ही बन्द मत रहो; बल्कि यह मानकर कि जबतक मेरा हृदय निर्मल है तबतक मैं सबके साथ मिल-जुल सकती

१. दक्षिण आफ्रिकाके लाजरस गैथिल।

२. मणिलाल और रामदास, दोनों गांधीजीके १९१४ में दक्षिण आफ्रिकासे भारत आ जानेके बादसे फीनिक्स में इंडियन ओपिनियनकी व्यवस्था और देखरेख कर रहे थे।

३. गांधीजीकी बहन रलियातबेनके पुत्र गोकुलदासकी विधवा पत्नी। गांधीजीकी इच्छापर वे आश्रम में रहने लगीं थीं। देखिए खण्ड १५, पृष्ठ २८९-९०।