पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/४२७

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१४३. पत्र : गिलिस्पीको'

[सिंहगढ़]

३० अप्रैल, १९२०

ईसाई-धर्म में प्रार्थनाको जो बहुत अधिक महत्त्व दिया गया है, वह मुझे मालूम है। किन्तु मेरी निजी धारणा यह है कि सभी प्रार्थनाओंकी तरह ईसाइयोंकी प्रार्थना भी केवल एक ढर्रा-भर बनकर रह गई है और इसमें भी अक्सर स्वार्थ हुआ करता है। हिन्दू-प्रार्थना-विधिमें से इन्हीं दो बुराइयोंको दूर करनेकी मैं अपने-भर पूरी कोशिश कर रहा हूँ।

[अंग्रेजीसे]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।

सौजन्य: नारायण देसाई

१४४. पत्र : श्रीमती जिन्नाको

३० अप्रैल, १९२०

जिन्ना साहबको मेरी याद दिला दीजिए एवं उन्हें हिन्दुस्तानी या गुजराती सीखनेके लिए राजी कीजिए। आपकी जगह मैं होऊँ तो उनके साथ हिन्दुस्तानी या गुजरातीमें ही बोलना शुरू कर दूं। इसमें ऐसा कोई खतरा नहीं है कि आप अंग्रेजी भूल जायेंगी या दोनों एक दूसरेकी बात समझ न पायेंगे। है ऐसा कोई खतरा?

क्या आप यह कर सकेंगी? और मैं तो आपका मेरे प्रति जो स्नेह है उसके कारण भी आपसे ऐसा करनेका अनुरोध करूँगा।

[अंग्रेजीसे]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।

सौजन्य : नारायण देसाई



१. अहमदाबादवाले रेवरैंड गिलिस्पी।

२. मुहम्मद अली जिन्ना की पत्नी।