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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भी मनोभाव मुझसे न छिपाओ, तभी तुम्हारी भक्ति-भावनाको मैं पूरी तरह प्राप्त कर सकता हूँ। इसलिए इस विषय में तो मुझे अवश्य ही आश्वस्त करो। भाई नरहरिके किस्सेसे तो तुम परिचित ही होगे। उन्होंने कुछ बात अपने मनमें ही रखी और इस तरह उन्होंने अनजाने ही मेरे प्रति अन्याय किया। यह बात तुमपर तनिक भी लागू नहीं होती। घटना तो वह भी तुच्छ थी; लेकिन उससे हम सब बहुत कुछ सीख सकते हैं।

बापूके आशीर्वाद

मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५७८५) से।

सौजन्य : राधाबेन चौधरी

१४१. पत्र : अब्दुल बारीको

सिंहगढ़

३० अप्रैल, १९२०

प्रिय मौलाना साहब,

में फैजाबाद नहीं आया, इसके लिए आपसे माफी चाहता हूँ। अगर आता तो यह मेरी सेहतके लिए बुरा साबित होता। और कुछ नहीं तो अगली लड़ाईके लिए ही में अपनी सेहत ठीक रखना चाहता हूँ। लगता है मेरा बायाँ पैर काम नहीं कर रहा है। अगर मुझे यहाँ कुछ दिनोंतक रहने दिया जाये तो मुझे आशा है कि यह यहीं ठीक हो जायेगा। हमारे साथियोंसे भी मेरी लाचारीका इजहार कर दीजिएगा।

इंग्लैंड जानेके बारेमें तो आपने सब-कुछ सुन ही लिया होगा। दोस्तोंकी खास ख्वाहिशके बिना में वहाँ जाना नहीं चाहता था और ऐसी किसी ख्वाहिशकी कोई साफ निशानी दिखाई नहीं दी, इसलिए मैंने श्री मॉण्टेग्युको तार' दे दिया है। अब उनके जवाबकी राह देख रहा हूँ। में यह बहुत जरूरी समझता हूँ कि मौलाना अबुल कलाम आजाद और शौकत अली बम्बई में ही रहें ताकि उनसे बराबर सलाह-मशविरा किया जा सके। संगठनका काम फौरन शुरू हो जाना चाहिए। बदकिस्मतीसे मौलाना अबुल कलाम आजाद अभीतक बीमार हैं। मैंने उन्हें जितनी जल्दी हो सके, बम्बई आ जानेको कह दिया है।

[अंग्रेजीसे]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।

सौजन्य : नारायण देसाई

१. देखिए “तार : भारत-मन्त्रीको ”, १३-३-१९२० के बाद।

२. क्योंकि गांधीजीके साथ वे भी उस उप-समितिके सदस्य थे जिसे अखिल भारतीय खिलाफत समितिने यह तथ करनेके लिए नियुक्त किया था कि खिलाफतके सवालपर आन्दोलन कब प्रारम्भ किया जाये।