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१३९. पत्र : सरलादेवी चौधरानीको

२९ अप्रैल, १९२०

यह लिखते हुए मैं दीपकको बालकृष्णके मधुर सितारके साथ गाते सुन रहा हूँ। बालकृष्ण मुझे देवताओंसे मिली महान् भेंट है। वह फूलकी तरह सरल है। मेरी देख-भाल वह माताकी तरह करता है।

क्या तुमने खिलाफतके बारेमें ए० पी०' को दिया गया मेरा सन्देश पढ़ा ? यह सोचकर कि शायद तुम्हें 'यंग इंडिया' की प्रति न मिली हो, मैं एक प्रति भेज रहा हूँ। उसमें खादीपर मेरा लेख है। उसे जरूर पढ़ो।

 कलवाला भजन नीचे दे रहा हूँ:

 मोरी लागी लगन गुरु चरननकी।

 चरन बिना मुझे कछु नहीं भावै।

 झूठ माया सब सपननकी ॥ मोरी ०

 भवसागर सब सूख गया है।

 फिकर नहीं मुझे तरननकी। मोरी

 मीरा कहे प्रभु गिरधर नागर।

 उलट भई मोरे नयननकी ॥ मोरी ०

[अंग्रेजीसे]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।

सौजन्य : नारायण देसाई

१४०. पत्र : मगनलाल गांधीको

सिंहगढ़

वैशाख सुदी १२ [२९ अप्रैल, १९२०]

चि० मगनलाल,

प्यासा जिस तरह पानीकी बाट जोहता है उसी तरह मैं तुम्हारे पत्रकी राह देख रहा हूँ। तुम्हें निराश देखता हूँ तो मेरा हृदय रो उठता है; क्योंकि अपनी आशाओंका महल मैंने तुम्हारे बलपर ही खड़ा किया है। मेरी अभिलाषा है कि तुम अपना एक

१. एसोसिएटेड प्रेस। यहाँ गांधीजोका तात्पर्य शायद २९ अप्रैल, १९२० को छपे अखबारोंको दिये गये उनके वक्तव्यसे है; देखिए पिछला शीर्षक।

२. गांधीजी स्वास्थ्य लाभके लिए १९२० में सिंहगढ़ गये थे। उस वर्ष वैशाख सुदी १२, २९ अप्रैलको पड़ी थी।