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खद्दरका उपयोग

तब सवाल यह उठता है कि सूत कैसे काते और कपड़ा कैसे बनें । मैं अपने निजी अनुभवसे जानता हूँ कि यदि सामान्य स्तरके कपड़ेको पहनने लायक मान लिया जाये तो हाथ-कते सूत और हाथ-बुने कपड़े से बाजारको पाटा जा सकता है। यह कपड़ा उत्तर भारतमें खद्दर कहलाता है और बम्बई अहातेमें खादी। हम सरलादेवी के कृतज्ञ हूँ चूँकि उन्होंने दिखा दिया है कि खादीकी साड़ी बनाना भी सम्भव है। उन्होंने सोचा कि वे राष्ट्रीय सप्ताह में खद्दरकी साड़ी और खद्दरका ब्लाउज़ पहनकर अपनी भावनाको अधिक से अधिक अच्छी तरह प्रकट कर सकती हैं। और उन्होंने वैसा ही किया भी। उन्होंने खद्दरकी साड़ी पहनकर भोजोंमें भाग लिया। लोगोंको यह बात असम्भव प्रतीत होती थी। वे सोचते थे कि जिस स्त्रीने बढ़ियासे-बढ़िया रेशमी वस्त्र या बारीकसे- बारीक ढाकेकी मलमलके सिवा दूसरा कोई कपड़ा कभी नहीं पहना वह सम्भवतः भारी खद्दरका बोझ नहीं सह सकती। लेकिन उन्होंने ये सारी आशंकाएँ असत्य सिद्ध कर दीं। इसके अतिरिक्त वे खद्दरकी साड़ी में भी उतनी ही फुर्तीली और सुन्दर लग रही थीं, जितनी अपनी बढ़िया चमकीली रेशमी साड़ियोंमें लगती थीं। उनके महान् मातुल सर रवीन्द्रनाथ ठाकुरन जब उन्हें खद्दरकी साड़ी पहने देखा तो उन्होंने उन्हें कुछ ऐसे शब्दों में आशीर्वाद दिया: “अगर इस साड़ी में तुम्हें कुछ अटपटापन नहीं लगता तो तुम इसे पहनकर कहीं भी और किसी भी भोजमें जा सकती हो; तुम्हें यह खूब जँचेगी। इस पुनीत घटनाका वर्णन में यह दिखानेके लिए कर रहा हूँ कि भारतके दो अत्यन्त कलाप्रिय व्यक्तियोंको खद्दरमें कुछ भी कलाहीनता नहीं मिली। में इसी कपड़ेको भारतके सुसंस्कृत परिवारोंमें दाखिल कराना चाहता हूँ, क्योंकि प्रारम्भिक अवस्था में स्वदेशी आन्दोलनकी तात्कालिक सफलता इसीके उपयोगपर निर्भर है।

मेरी दृष्टि में तो खद्दरके साथ जैसे विचारों और बातोंका सम्बन्ध है उनके कारण यह हर अवस्था में ढाकाकी बारीकसे- बारीक मलमलसे अधिक कलात्मक है। आज खद्दर उन लोगोंका पेट भर रहा है जो भूखों मर रहे थे। यह उन स्त्रियोंका पेट भर रहा है जिन्होंने लज्जाजनक जीवनका त्याग करके पुनः अच्छे जीवनको अपनाया है और उनका भी जो काम करनेके लिए बाहर नहीं जाना चाहती थीं तथा बेकार रहकर आपस में लड़ती-झगड़ती रहती थीं। इसलिए खद्दरमें अपना एक चैतन्य है। इसकी अपनी एक विशेषता है। खद्दर पहननेवाला व्यक्ति बता सकता है कि इसके निर्माणमें इसे किन प्रक्रियाओंसे गुजरना पड़ा है और कौन-सी प्रक्रिया किस व्यक्तिके हाथों सम्पन्न हुई है। यदि हमारी रुचि बिगड़ न गई होती तो हम गर्मीमें शरीरसे चिपक जाने- वाले बरेसी (कैलिको) की अपेक्षा खद्दरको अधिक पसन्द करते। जो लोग अब खादीका उपयोग कर रहे हैं वे ही यह कहें कि मैं सही कह रहा हूँ या गलत।

१. सरलादेवी चौधरानी।

२. गांधोजीने उनके कहनेपर उनके लिए विशेष रूपले खरको एक साड़ी और एक ब्लाउज बनवा दिया था।