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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

किया जाता है। मगर किसी धार्मिक गोष्ठीमें लोग किसी ऐसे पुजारीके साथ मिलकर प्रार्थना-गीत गाने से इनकार कर दें जिसे अपनी चारित्रिक प्रतिष्ठासे अधिक अपने पदका ही खयाल हो तो इसमें कोई हर्ज नहीं। किन्तु ऐसा बहिष्कार हिंसा- त्मक माना जायेगा जिसमें अपमान, व्यंग्य-आक्षेप या गाली-गलौजके द्वारा किसी व्यक्तिका जीवन असह्य बना दिया जाये। असली खतरा तो इसमें है कि लोग अधीर होकर और प्रतिशोधकी भावनासे असहयोगका सहारा लेने लगें। उदाहरणके लिए अगर एकाएक कर देना बन्द कर दिया जाये या सैनिकोंपर हथियार डालनेके लिए दबाव डाला जाने लगे तो ऐसा हो सकता है। किन्तु मुझे किसी दुष्परिणामकी आशंका नहीं है। इसका सीधा-सादा कारण यह है कि प्रत्येक उत्तरदायी मुसल- मान समझता है कि अगर असहयोग सफल बनाना है तो उसमें हिंसा बिलकुल न होनी चाहिए। दूसरी आपत्ति यह उठाई गई है कि जो लोग नौकरी छोड़ देंगे उनके सामने भूखों मरनेकी नौबत आ सकती है। यह एक सम्भावना मात्र है और ऐसी सम्भावना जिसके सच होनेकी कम ही आशंका रखनी चाहिए। क्योंकि समिति निश्चय ही ऐसे लोगों के लिए कोई समुचित व्यवस्था करेगी जो एकाएक रोजगारसे वंचित हो सकते हों। किन्तु में इस कठिन समस्शाके सभी पहलुओंपर किसी आगामी अंकमें अधिक विस्तारसे विचार करना चाहता हूँ, और आशा करता हूँ कि उसमें दिखा सकूंगा कि यदि भारतीय मुसलमानोंकी भावनाओंका खयाल रखना है तो सरकार का निर्णय प्रतिकूल होनेपर उसका एकमात्र उपाय असहयोग ही है।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, २८-४-१९२०


१३६. खद्दरका उपयोग

आज जब कि स्वदेशी आन्दोलनकी दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति हो रही है और इसमें मुसलमान भी हिन्दुओंके समान ही उत्साहपूर्वक भाग ले रहे हैं, यह विचार करना उपयुक्त ही है कि स्वदेशीको प्रोत्साहन देनेका सर्वोत्तम उपाय क्या है। स्वदेशीका " क ख ग " जाननेवाले व्यक्तिको भी यह मालूम है कि हम अपनी आवश्यकता पूरी करनेके लिए पर्याप्त कपड़ा तैयार नहीं करते। इसलिए यदि हम मिलके बने कपड़ेका उपयोग करके संतोष कर लेते हैं तो इसका सीवा-सादा मतलब यह हुआ कि हम गरीब लोगोंको उनकी जरूरतकी चीजोंसे वंचित करते हैं, या कमसे-कम मिलके बने कपड़ेकी कीमत ही बढ़ा देते हैं। इसलिए स्वदेशीको प्रोत्साहन देनेका एकमात्र उपाय है ज्यादा कपड़ा तैयार करना। ऐसा तो नहीं हो सकता कि हमारे देशमें सहसा मिलोंकी भरमार हो जाये। इसलिए हमें हाथ-कते सूतका और हाथ-बुने कपड़ेका सहारा लेना चाहिए। सूत जितना महँगा अब है उतना महँगा शायद पहले कभी नहीं रहा। मिलें सुतसे भारी मुनाफे कमा रही हैं। इसलिए जो व्यक्ति एक गज सूत भी कातता है, वह सूतके उत्पादन में हाथ बँटाकर उसे पुस्ता बनाता है।