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असहयोग

भारतीय मुसलमानको ब्रिटिश मन्त्रियोंके वादोंपर कोई विश्वास नहीं है। उसकी राय- में टर्कीके खिलाफ उठनेवाली आवाज इस्लामके खिलाफ ईसाइयतकी आवाज है, जिसका नेता इंग्लैंड है। श्री मुहम्मद अलीका हालमें मिला तार इस धारणाको बल देता है, क्योंकि उसमें वे लिखते हैं कि मेरे शिष्ट मण्डलको इंग्लैंडके विपरीत फ्रांसमें फ्रांसीसी सरकार व जनता दोनोंका समर्थन मिल रहा है।

इस प्रकार यदि यह बात सच है, और मैं मानता हूँ कि सच है, कि भारतीय मुसलमानोंका यह उद्देश्य न्यायसंगत और धर्म-शास्त्रोंसे समर्थित है, तब हिन्दुओंका उन्हें पूर्ण समर्थन न देना भाई-चारेके कर्त्तव्यसे कायरतापूर्वक पलायन करना होगा और वे अपने देशके मुसलमान भाइयोंसे कोई सौहार्द पानेके हकसे वंचित हो जायेंगे। इसलिए जनताके एक सेवकके नाते यदि मैं भारतीय मुसलमानोंको उनके धार्मिक विश्वासके अनुसार खिलाफत कायम रखनेके संघर्ष में साथ न दूं तो मैं जनसेवक होनेका जो दावा करता हूँ उसके अयोग्य हो जाऊँगा। मैं विश्वास करता हूँ कि उनका समर्थन करके में साम्राज्यकी सेवा कर रहा हूँ क्योंकि अपने मुसलमान देशवासियोंको उनकी भावनाएँ अनुशासित रूपसे प्रकट करने में मदद देनेसे आन्दोलनको पूर्णतः व्यवस्थित और सफल बनाना भी सम्भव हो जाता है।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, २८-४-१९२०

१३५. असहयोग

'टाइम्स ऑफ इंडिया' के एक लेखक, उस अद्भुत पत्रके सम्पादक और श्रीमती बेसेंट, इन सभीने खिलाफत आन्दोलनके सिलसिलेमें जिस असहयोगकी बात सोची गई है, उसकी अपने-अपने तरीके से निन्दा की है। इन तीनोंके ही लेखोंमें स्वभावतः कई प्रासंगिक प्रश्नोंपर विचार किया गया है; उन्हें तो मैं फिलहाल छोड़ देता हूँ; लेकिन इन लेखकोंने जो दो गम्भीर आपत्तियाँ उठाई हैं, उनका उत्तर देना चाहता हूँ। यदि ये आपत्तियाँ उग्र शब्दों में व्यक्त की गई होती तो इनपर उतना अधिक विचार करने की जरूरत न होती; किन्तु ये जिस तरह संयत शब्दोंमें व्यक्त की गई हैं उसके कारण ये बहुत अधिक विचारणीय हो जाती हैं। लेखकोंका खयाल है कि असहयोग करनेपर हिंसासे बचना असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य होगा। 'टाइम्स ऑफ इंडिया' के सम्पादकीय में कहा गया है कि दरअसल तो बहिष्कार आरम्भ भी हो गया है, क्योंकि कलकत्ता और दिल्ली में बहिष्कारका आश्रय लिया गया हैं। अब मुझे भय है कि एक हदतक तो बहिष्कारसे नहीं ही बचा जा सकता। मुझे याद है कि दक्षिण आफ्रिकामें अनाक्रामक प्रतिरोधकी प्रारम्भिक स्थितिमें जो लोग मैदान छोड़कर हट गये थे, उनका बहिष्कार किया गया था। बहिष्कार हिंसात्मक है या शान्तिपूर्ण, यह इस बातपर निर्भर करता है कि वह किस तरीके से

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