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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आदरभावसे वंचित नहीं होना चाहता, इसलिए मैं खिलाफतके सवालपर अपनी स्थिति यथासम्भव स्पष्ट शब्दोंमें रखनेका प्रयत्न कर रहा हूँ। पत्रसे साफ जाहिर होता है कि गैरजिम्मेदार किस्मकी पत्रकारितासे सार्वजनिक कार्यकर्ता कितना खतरा उठाते हैं। मैंने 'टाइम्स' की वह रिपोर्ट नहीं पढ़ी है जिसका उल्लेख मेरे मित्रने किया है। किन्तु इतना तो स्पष्ट है कि उस रिपोर्टने इस पत्र-लेखकके दिमाग में एक ऐसी शंका पैदा कर दी है कि मौजूदा अराजकतावादी तत्त्वोंके साथ शायद मेरा कोई गठ- बन्धन है और शायद मैंने अपने नैतिक दायित्वोंको उठाकर ताकमें रख दिया है।

वस्तुतः नैतिक दायित्वकी अपनी भावनाके वश होकर ही मुझे खिलाफतका सवाल हाथमें लेना और अपने आपको मुसलमानोंके साथ एकरूप करना पड़ा है। यह बिलकुल सच है कि मैं हिन्दू-मुस्लिम एकता करानेमें योग दे रहा हूँ, परन्तु निश्चय ही इस खयालसे नहीं कि " इंग्लैंड और मित्र राष्ट्रोंको टर्की-साम्राज्यके टुकड़े करनेके मामले में परेशान करूँ। " सरकारोंको या किसी अन्य व्यक्तिको परेशान करना मेरे सिद्धान्तके विरुद्ध है। फिर भी इसका यह अर्थ नहीं कि मेरे कुछ कामोंसे किसीको भी परेशानी होनेकी सम्भावना नहीं है। परन्तु जब में किसी अन्यायकारीको अन्याय करनेमें सहायता देने से इनकार करके न्यायका प्रतिरोध करूँ तो उसको होनेवाली परेशानीके लिए में अपने आपको जिम्मेदार नहीं मानूंगा। खिलाफतके सवालपर में वचन-भंगके किसी कृत्यका भागीदार नहीं बनना चाहता । श्री लॉयड जॉर्जकी अहम घोषणा लगभग पूरे तौरपर भारतीय मुसलमानोंके पक्षका ही समर्थन करती है और जब उनके धर्म शास्त्र भी उस मामलेका समर्थन करते हैं तो वह अकाट्य हो जाता है। इसके अलावा यह कहना गलत है कि मैंने "अपना गठबन्धन मौजूदा अराजकतावादी तत्त्वोंमें से एक के साथ कर लिया है, " या मैंने "इस्तम्बूलकी सरकारकी क्रूर और अन्यायपूर्ण निरंकुशताको मानव जातिके हितोंसे अधिक महत्त्व देनेके लिए ही इस गलत ढंगके आन्दोलनको शुरू किया है। " पूरी मुस्लिम माँग में कहीं भी इस्तम्बूल सरकारकी तथाकथित निरंकुशता- को बनाये रखनेका कोई आग्रह नहीं है। वरन् इसके विपरीत मुसलमानोंने उस सरकार- से गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकोंके संरक्षणकी पूरी जिम्मेदारीका आश्वासन लेनेका सिद्धान्त स्वीकार किया है। में नहीं जानता कि आर्मीनिया और सीरियाकी परिस्थितिको कहाँ- तक अराजकतापूर्ण माना जा सकता है और टर्कीकी सरकारको उसके लिए कहाँतक जिम्मेदार माना जा सकता है। मुझे बहुत सन्देह है कि इन क्षेत्रोंसे आनेवाले समा- चारोंमें बहुत अतिशयोक्ति है और यूरोपीय शक्तियाँ खुद एक तरहसे आर्मीनिया और सीरिया में जो भी कुशासन है उसके लिए जिम्मेदार हैं। परन्तु टर्कीमें हो या कहीं और, में अराजकताका समर्थन नहीं कर सकता। मित्र राष्ट्र उस अराजकताको बड़ी आसानीसे अन्य तरीकों और साधनोंसे भी खत्म कर सकते हैं; उसके लिए टर्की साम्राज्यको समाप्त कर देना या उसके टुकड़े करना या उसे कमजोर बनाना- ही मात्र साधन नहीं है। मित्र राष्ट्रोंके सामने कोई बिलकुल ही नई परिस्थिति नहीं है। यदि टर्कीका विभाजन करना था, तो युद्ध शुरू होने से पहले ही स्थिति स्पष्ट कर देनी चाहिए थी। तब वादा खिलाफीका कोई सवाल न उठता। वैसे ही किसी भी