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१३४. मैं क्यों खिलाफत आन्दोलनमें शामिल हुआ हूँ?

दक्षिण आफ्रिकाके मेरे एक आदरणीय मित्रने, जो आजकल इंग्लैंडमें रह रहे हैं, मुझे एक पत्र लिखा है जिससे में निम्न उद्धरण देता हूँ:

आपको निःसन्देह याद होगा कि जब रेवरेंड जे० जे० डोक' आपको दक्षिण आफ्रिकामें आपके आन्दोलनमें सहायता दे रहे थे उस समय में आपसे मिला था। इसके बाद उस देशमें आपके रुखके औचित्यसे बहुत ही प्रभावित होकर में इंग्लैंड लौट आया था। युद्धपूर्वके कुछ महीनोंमें मैंने आपकी तरफसे लेखादि लिखे, व्याख्यान दिये और कई स्थानपर लोगोंसे बातचीत की थी। मुझे उसका खेद नहीं है। सैनिक सेवासे लौटनके बाद मैंने समाचारपत्रोंमें देखा है कि आप अधिक संघर्षशील रुख अपनाते प्रतीत होते हैं।... टाइम्स' में मैंने एक रिपोर्ट देखी है कि आप हिन्दू-मुसलमानोंमें एकता पैदा करनेके काममें सहायता इसलिए दे रहे हैं कि टर्की-साम्राज्यको टुकड़ोंमें विभाजित करने या कुस्तु न्तुनियासे टर्की सरकारको हटाने के मामलेमें इंग्लैंड और मित्र राष्ट्रोंको परेशानीमें डाला जाये। में चूंकि आपकी न्यायभावना और मानवीय प्रवृत्तियोंसे परिचित हूँ, इसलिए में महसूस करता हूँ कि जो थोड़ा-बहुत आपके उद्देश्य के लिए मैंने यहाँ किया है, उसे देखते हुए आपसे यह पूछनेका मुझे अधिकार है कि क्या यह रिपोर्ट सही है। मुझे विश्वास नहीं होता कि आपने इस्तम्बूल [टक] सरकारकी क्रूर और अन्यायपूर्ण निरंकुशताको समूची मानवजातिके हितोंसे अधिक महत्व देनेके लिए ही गलत ढंगका यह आन्दोलन छेड़ा होगा। क्योंकि यदि पूर्वके किसी भी देशने इन मानव-हितोंको कुचला है तो निश्चय ही वह टर्की है। सीरिया और आर्मीनियाकी स्थितिकी मुझे निजी जानकारी है और मैं तो केवल यही अनुमान लगा सकता हूँ कि यदि 'टाइम्स में प्रकाशित रिपोर्ट सही है तो आपने अपने नैतिक दायित्वोंको उठाकर ताकमें रख दिया है और अपना गठबन्धन मौजूदा अराजकतावादी तत्वोंसे कर लिया है। खैर, जबतक में आपसे यह न सुन लूं कि आपका रुख यह नहीं है, तबतक में अपने मनमें कोई पूर्वधारणा नहीं बनाना चाहता। शायद आप मुझे उत्तर देनेकी कृपा तो करेंगे ही।

मैंने पत्रका उत्तर दे दिया है। परन्तु चूँकि इस उद्धरणमें व्यक्त विचार शायद मेरे कई अंग्रेज मित्रोंके भी हों और यदि हो सके तो में उनकी मित्रता या उनके

१. जोजेफ जे० डोक (१८६१-१९१३); जोहानिसबर्ग बैप्टिस्ट चर्चके पादरी; उन्होंने १९११ में गांधीजी और पोलकके जेल जानेपर उनकी अनुपस्थितिमें इंडियन ओपिनियनका सम्पादन किया था।

२. मित्र राष्ट्रों द्वारा टर्ककि सामने रखी गई शान्तिकी शर्तोंके लिए देखिए परिशिष्ट १।

३. उपलब्ध नहीं।