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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हूँ कि स्वराज्यकी ओर हमारी प्रगतिकी रफ्तार उन्हीं कार्योंके विस्तारसे सबसे अच्छे ढंगसे तेज हो सकती है जिनका मैंने उल्लेख किया है, इसीलिए में उन्हें राष्ट्रीय कार्य- क्रममें सबसे आगे रखता हूँ। में ऑल इंडिया होमरूल लीग' को किसी भी अर्थमें दलगत संस्था नहीं मानूंगा। में किसी भी दलमें नहीं हूँ और इसके बाद आगे भी किसी दलमें रहना नहीं चाहता। मैं जानता हूँ कि लीगको अपने संविधानके अनुसार कांग्रेसकी सहायता करनी है, परन्तु ब्रिटिश संसदकी भाँति ही में कांग्रेसको भी दलगत संस्था नहीं मानता। यद्यपि ब्रिटिश संसदमें सभी दल शामिल हैं और उसमें समय-समयपर किसी एक दलकी प्रमुखता रहती है, फिर भी वह दलगत संस्था तो नहीं है। मैं आशा करूंगा कि सभी दल कांग्रेसको एक राष्ट्रीय संगठन समझेंगे, एक ऐसा राष्ट्रीय संगठन जिसका मंच सभी दलोंको सुलभ है, जिसपर आकर वे अपने-अपने विचारोंके अनुसार नीति अपनानेके लिए राष्ट्रसे अपील कर सकते हैं। मैं लीगकी नीति ऐसी बनानेकी कोशिश करूँगा कि कांग्रेस अपना निर्दलीय राष्ट्रीय स्वरूप बनाये रख सके।

अब अपने तरीकोंकी बात कहता हूँ। मेरा विश्वास है कि देशके राजनैतिक जीवन- में अविचल सत्य और ईमानदारीका समावेश कराना बिलकुल सम्भव है। जहाँ में लीग से यह उम्मीद नहीं करता कि सविनय अवज्ञाके मेरे तरीकोंमें वह मेरा अनुसरण करे, वहाँ मेरी पूरी-पूरी यह कोशिश भी रहेगी कि हमारे राष्ट्रकी सभी गतिविधियोंमें सत्य और अहिंसाको स्वीकार करवा सकूं। तब हम सरकारों और उनके तरीकोंसे डरना या उनपर अविश्वास करना छोड़ देंगे। किन्तु में अभी इसके बारेमें अधिक विस्तारसे नहीं कहना चाहता। इसके बजाय में चाहूँगा कि मेरी इस सीवी-सी उक्तिको लेकर लोगोंके मनमें जो भी अनेक शंकाएँ उठेंगी उनका समाधान समय ही करे। अभी मेरा प्रयोजन यहाँ अपने द्वारा निरूपित नीतिकी सचाई या अपने कार्यका औचित्य सिद्ध करना नहीं है। यहाँ मेरा प्रयोजन तो लीगके सदस्योंके सामने सभी बातें खोलकर रख देना और प्रस्तुत कार्यक्रमकी आलोचना करना और लीगकी उन्नतिके लिए वे जो भी सुझाव देना चाहें, देने के लिए उनको उत्साहित करना ही है।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, २८-४-१९२०



१. ऑल इंडिया होमरूल लीग भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेससे सम्बद्ध थी।

२. सितम्बर १९२० में गांधीजीने कलकत्ता में सभी होमरूल लीगियोंको एकत्र किया और लीगके सिद्धान्तोंको ऐसा स्वरूप दे दिया जिसे बाद में कांग्रेसने नागपुर-अधिवेशनमें स्वीकार कर लिया था। उन्होंने 'लीग' का नाम भी बदलकर " स्वराज्य सभा " रख दिया था।