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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पसन्द किया है। लेकिन वाइसराय महोदयने इस सुझावके सम्बन्धमें अपनी सहमति प्रकट नहीं की है और अभी हम लोग भी पूरी तरहसे इसके लिए तैयार नहीं हैं, इससे मैंने तो यही माना है कि में न जाऊँ तो अधिक अच्छा है। इसके बाद यदि मुझे ऐसा लगा कि मुसलमान भाइयोंकी इच्छा है अथवा मेरा जाना सरकारको प्रिय है तो मैं अवश्यमेव जानेका विचार करूंगा।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, २५-४-१९२०


१३२. पाठकोंसे

'नवजीवन' के आकार तथा अहमदाबाद और बम्बईमें बिकनेवाली उसकी प्रतिके निर्धारित मूल्योंमें हमने अभी हाल ही में परिवर्तन किया है। कागजकी तंगी है और उसका भाव भी बढ़ता जाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि 'नवजीवन' में हमें जो घाटा हो रहा है यदि वह इसी प्रकार होता रहा तो एक वर्ष पूरा होनेतक अर्थात् अगले पांच महीने में हमें दस हजार रुपयेका घाटा हो चुकेगा। उम्मीद है कि विज्ञापन न लेनेके हमारे निश्चयको पाठक अवश्य पसन्द करेंगे, और साथ ही हमें जो भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है उसे भी, मेरी समझमें, वे उचित नहीं मानेंगे। इसलिए व्यवस्थापकोंने आकार घटा देनेका जो सुझाव रखा था उसे हमने स्वीकार कर लिया है। फलस्वरूप इस बार पाठकोंको आठ पृष्ठोंका ही 'नवजीवन' मिलेगा। आशा है पाठक इससे रुष्ट नहीं होंगे। जैसा कि मैंने पहले लिखा है, मैं तो पाठकोंको 'नव- जीवन का भागीदार ही मानता हूँ। 'नवजीवन' के व्यवस्थापक लाभ अथवा व्यापारके उद्देश्य से यह पत्र चलाना नहीं चाहते लेकिन इसके साथ ही वे उसे नुकसान उठाकर भी नहीं चलाना चाहते। यदि घाटा सहकर पत्र निकालना पड़े तो मैं यही मानूंगा कि जनताको 'नवजीवन' की जरूरत नहीं है। लेकिन मेरी मान्यता भिन्न ही है। जो इस पत्रको चला रहे हैं, उन व्यवस्थापकोंके लिए विज्ञापन लिए बिना चलानेका यह प्रयोग नया है। और फिर कागजकी कीमत इतनी बढ़ जायेगी, ऐसा किसीने भी नहीं सोचा था। यह सोचा था कि लड़ाई बन्द होनेपर कीमतें कम होंगी। और फिर यह भी खयाल था कि पहले जिन कागजका उपयोग किया जा रहा था [भविष्य में भी] उसीसे काम चल जायेगा। अनुभवसे मालूम हुआ कि ऐसे हलके कागजपर छपे 'नवजीवन' की फाइल रखना असम्भव है। इन कारणोंसे चन्दा बढ़ाना आवश्यक लगा। पुराने ग्राहकोंके लिए चन्दा तो चार रुपये रखना निश्चित है किन्तु पुराने ग्राहक भी घाटेको कम करने में हिस्सा बँटाये इस उद्देश्य से पृष्ठ आठ कर दिये गये हैं। यदि कागजके दामों में बहुत वृद्धि न हो तो मुझे उम्मीद है कि इस वर्ष हमें इससे ज्यादा फेरफार नहीं करना पड़ेगा। जो परिवर्तन करना पड़ा है उसके लिए पाठक क्षमा करेंगे, ऐसी मेरी मान्यता है। तथापि मैं आश्वासन देना चाहूँगा कि