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१३१. मैं विलायत क्यों जाऊँ?

कुछ पाठक मेरे प्रत्येक काममें इतनी ज्यादा दिलचस्पी लेते हैं कि मैं उनकी जिज्ञासाको सदा ही शान्त नहीं कर पाता। इसका कारण मेरी लापरवाही नहीं है; एक तो उनके सभी प्रश्नोंका विस्तृत उत्तर देनेका मेरे पास समय नहीं रहता और फिर प्रत्येक प्रश्नका विस्तृत उत्तर देने योग्य जगह भी 'नवजीवन' में नहीं रखी जा सकती। तथापि मैं उनके सार्वजनिक होनेके कारण कितने ही प्रश्नोंके उत्तर देना आवश्यक समझता हूँ। मेरी विलायत जानेकी बात भी एक ऐसा ही प्रश्न है।

मैं हमेशा नेताओंके विलायत जानेकी बातका विरोध करता हूँ; फिर में ही इस बार विलायत जानेके लिए किस तरह तैयार हो गया--कुछ-एक पाठकोंने ऐसी शंका की है। मेरी राय विलायत जानेके विरोध में हैं, उनका ऐसा समझना ठीक ही है, और इसलिए उनकी यह शंका भी उचित है। लेकिन मैंने यह तो कभी नहीं माना कि कोई कभी विलायत न जाये। मैं ऐसे प्रसंगकी कल्पना कर सकता हूँ जब इंग्लैंड न जाना गुनाह हो सकता है। खिलाफतके प्रश्नको लेकर 'जाना ही चाहिए' मेरे मनमें ऐसी कोई बात नहीं है। लेकिन मेरे जाने से कदाचित् लाभ हो सके इसलिए इसका निर्णय करनेकी बात मैंने मुसलमान भाइयोंपर ही छोड़ दी है। उन्होंने यह कहा कि अगर मुझे विलायत भेजना निश्चय हुआ तो मुझे उसके लिए तैयार रहना चाहिए; मैंने उनकी बात मान ली और दो शर्तें उनके सामने रखीं। एक तो यह कि प्रतिनिधि मण्डल भेजनके लिए यहाँके लोगोंको पूरी तरह तैयार रहना चाहिए और दूसरी यह कि माननीय वाइसराय महोदयकी ओरसे अनुमोदन और अनुमति मिलनी चाहिए। वाइसराय महोदयकी अनुमति मिल गई है, वे हमारे जानेके औचित्यके सम्बन्ध- में विचार प्रकट करनेमें संकोच अवश्य कर रहे हैं। इसपर मैंने फिर खिलाफत समितिके पास जाकर, ऐसी स्थितिमें मुझे क्या करना चाहिए, इसका निर्णय करनेकी बात उनकी जवाबदारीपर छोड़ दी।' खिलाफत समितिमें मतभेद है। सामान्य दृष्टिकोण तो यह है कि फिलहाल नहीं जाना चाहिए और अभी इसलिए विलायत जाना स्थगित हो गया है।

[शिष्टमण्डलके] जानेका उद्देश्य केवल [खिलाफतके प्रश्नपर] निर्णय प्राप्त करना ही नहीं है; अपितु यदि निर्णय हमारी मांगके अनुकूल न हुआ तो भारतपर उसकी प्रतिक्रिया क्या होगी.--इसकी चेतावनी देना भी है। असहयोग ऐसी-वैसी चीज नहीं है। यदि असहयोग आन्दोलनको उचित ढंगसे चलाया जा सके तो उसकी मार्फत सम्पूर्ण न्याय प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए इससे पहले कि हम इतने महत्त्वपूर्ण अस्त्रका प्रयोग करें, में सरकारको पूरी-पूरी चेतावनी देना आवश्यक समझता हूँ और यदि परिस्थितियाँ अनुकूल हुईं तो ऐसी चेतावनी देनेकी खातिर ही मैंने विलायत जाना

१. प्रथम भारतीय खिलाफत शिष्टमण्डल; जो २६ फरवरीको इंग्लैंड पहुँचा तथा अप्रैलतक वहीं रहा।