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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

चलनेके बाद दो गई थी। किन्तु कोई कानूनी भूल रह जानेके कारण उसे छोड़ दिया गया; और उसे यह मुक्ति हमारे गवर्नर महोदयके आदेशसे ही मिली थी। इसमें सरकारने बड़ी न्याय-बुद्धिसे काम लिया था। सरकार श्री हॉनिमैनके मामलेमें भी वैसी न्याय-बुद्धिका परिचय क्यों नहीं देती? कुछ लोग यदि यह कहकर सरकारका बचाव करना चाहें कि जो सरकार साधारणतया ऐसी न्याय-बुद्धिसे काम लेती है और जब उसने श्री हॉनिमैनकी स्वतन्त्रताका इस तरह अपहरण किया है तो उसके पास इसका कोई सबल कारण होगा। हम इस तर्कको उचित नहीं मानते। जब कि उक्त खूनीका सरकारसे कोई विरोध नहीं था, श्री हॉर्निर्मन तो एक तरहसे सरकारके विरोधी कहे जा सकते हैं। अपनी लेखनी और अपने भाषणोंसे वे सरकारको परेशान कर सकते थे । इसलिए उनकी स्वतन्त्रता छीन लेनमें सरकारका स्वार्थ था। इसी कारण खूनीकी हद- तक सरकारने जिस न्याय-बुद्धिका परिचय दिया, श्री हॉनिर्मनके मामलेमें उसने उसका कोई उपयोग नहीं किया। हमारा कहना है कि यदि श्री हॉनिमनने कोई ऐसी चीज़ लिखी हो जो कानून-सम्मत नहीं है तो उनपर मुकदमा चलाकर सजा दी जाए। बिना मुकदमा चलाए जो सजा दी गई है जनता उसे कदापि स्वीकार नहीं कर सकती। श्री हॉर्निर्मनकी स्वतन्त्रताके पक्षमें लड़ना जनताका अपनी स्वतन्त्रताके पक्षमें लड़ना है, अतएव हमें उम्मीद है कि जनता श्री हॉर्निर्मनके मामलेको नहीं भूलेगी तथा प्रभावशाली उपायोंसे श्री हॉनिमैनके विरुद्ध जारी किए गये आदेशको रद करवानेमें कुछ उठा नहीं रखेगी।

अब हम विचार करें कि इस दिशामें क्या किया जा सकता है। अप्रैल और मई महीनों में नेताओंके बम्बईमें न रहनेसे उक्त महीनोंमें खास हलचल नहीं रहती। इसलिए हम बम्बईमें २६ तारीखको किसी जोरदार सभाका आयोजन नहीं कर सकते। लेकिन जल्दीसे-जल्दी अवसर मिलते ही जनताको सारे बम्बई प्रदेशमें भारी सभाएँ आयोजित करके सरकारको बता देना चाहिए कि जबतक श्री हॉनिमनके विरुद्ध जारी किया आदेश रद नहीं हो जाता तबतक वह शान्तिसे नहीं बैठ सकती। बहुतसे प्रस्ताव पास कर दिये गये हैं ऐसा मानकर हमें यह नहीं समझ लेना चाहिए कि अब और प्रस्ताव पास करनेकी कोई जरूरत नहीं है। प्रस्तावोंके सम्बन्धमें हमारा दृष्टिकोण बदलना चाहिए। प्रायः प्रस्तावोंको प्रथम और अन्तिम उपाय माना जाता है । इसके बजाय उन्हें जनताके निश्चयको प्रकट करनेवाला पहला कदम ही समझा जाना चाहिए। यदि सरकार इन प्रस्तावोंपर अमल नहीं करती तो हममें उससे उनपर अमल करवानेकी शक्ति होनी चाहिए। यह शक्ति कैसी होनी चाहिए तथा इसका कब और किस तरह प्रयोग किया जाना चाहिए, इसपर फिलहाल यहाँ विचार करना आवश्यक नहीं है। हमें तो अभी इस बातपर विचार करना है कि प्रजा एकमत है या नहीं तथा वह श्री हॉनिमैनको मुक्त करवाने के लिए प्रयत्न करना चाहती है अथवा नहीं। इस सम्बन्ध में जो उपाय किये जाने चाहिए उन्हें हम पहले ही लिख चुके हैं।

[गुजराती]

नवजीवन, २५-४-१९२०