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९. पत्र: वी० एस० श्रीनिवास शास्त्रीको

[४ फरवरी, १९२० के पूर्व][१]

प्रिय श्री शास्त्री,[२]

मैं जानता हूँ कि फीजी और ब्रिटिश गियानाके शिष्टमण्डल[३] आपसे मिल चुके हैं या शीघ्र ही मिलनेवाले हैं। मैंने अभी-अभी 'यंग-इंडिया' के लिए एक लेख भेजा है, जो इस सप्ताहके बादवाले बुधवारसे पहले नहीं छप सकता। वह यथासमय आपके पास भेज दिया जायेगा। परन्तु इस बीच में आपसे यह कह देना चाहता हूँ कि आयोगके उद्देश्योंके बारेमें मुझे सन्देह है। आयोगके सदस्योंमें सदाशयता तो है, परन्तु वे हमारी कठिनाई समझने में असमर्थ हैं। मेरा खयाल है कि इस समय हम किसी भी रूपमें भारतीयोंके प्रवासका समर्थन नहीं कर सकते। यह ऐसा ही है जैसे कि खराब दूधमें अच्छा दूध मिला दें तो अच्छा भी खराब हो जाता है। फीजी और ब्रिटिश गियानामें वातावरण गिरमिटिया प्रथाकी दुर्गंधसे दूषित है। इस घातक दुर्गंधके दूर हो जानेके पश्चात् ही हम और प्रवासी भेज सकते हैं। यह सच है कि अब वहाँ जो भी मजदूर जायेंगे अपनी मर्जीसे जायेंगे और वहाँ वे स्वतन्त्र मजदूरोंकी तरह ही रहेंगे। फिर भी, हमें अपने देशवासियोंको सलाह तो देनी ही है। मैंने डा० न्यूननको सुझाव दिया है कि यदि वे किसी सुसंस्कृत भारतीयको ब्रिटिश गियाना जाकर वहाँकी स्थिति देखने और उसपर अपनी रिपोर्ट देनेकी व्यवस्था कर सकें तो अच्छा होगा। मैंने यह भी कहा है कि अगर आजमाइशी तौरपर एक बार जहाज-भर खेतिहर वहाँ भेज दिये जायें तो मैं बेजा नहीं मानता। क्या आप अमृतलाल ठक्कर[४] या तिवारीको[५] इन स्थानोंका दौरा करने के लिए भेज सकते हैं? डा० न्यूनन पूरा खर्च देने को राजी हो गये हैं।

आशा है, आपका स्वास्थ्य ठीक चल रहा होगा।

हृदयसे आपका,

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें अंग्रेजी मसविदे (एस० एन० ७३९३) की माइक्रोफिल्मसे।

  1. १. जिस लेखके प्रकाशनका उल्लेख गांधीजी इस पत्रमें कर रहे हैं, वह यंग इंडियामें बुधवार, ११ फरवरी, १९२० को छपा था। अतएव वह लेख और यह पत्र दोनों बुधवार ४ फरवरी, १९२० से पहले ही लिखे गये होंगे।
  2. २. वी० एस० श्रीनिवास शास्त्री (१८६९-१९४६); शिक्षा-शास्त्री और वक्ता; भारत सेवक समाज (सर्वेन्टस ऑफ इंडिया सोसाइटी) के अध्यक्ष, १९१५-२७ केन्द्रीय विधान परिषद् तथा कौंसिल ऑफ स्टेटके सदस्य, दक्षिण आफ्रिकामें भारतीय सरकारके एजेन्ट जनरल।
  3. ३ और ४. देखिए पिछला शीर्षक।
  4. ५. अमृतलाल विट्ठलदास ठकर (१८६९-१९५१); गुजराती इंजीनियर; जिन्होंने सर्वेन्टस ऑफ इंडिया सोसाइटीके आजीवन सदस्यको हैसियतसे पूरे समयका सामाजिक सेवा कार्य हाथमें ले लिया और बादमें हरिजनोंके कल्याणार्थ अपना समय और जीवन व्यतीत किया।
  5. ६.वेंकटेशनारायग तिवारी, सर्वेन्टस ऑफ इंडिया सोसाइटीके सदस्य।