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एक वर्ष पूरा हुआ

मैंने तो स्पष्ट रूपसे उनमें इन तीनों दोषोंको देखा है। आज भी काठिया- वाड़ियोंके बारेमें मेरे पास इन दोषोंकी शिकायतें आती रहती हैं। यह भी हो सकता है कि मैं निरन्तर इनके सम्पर्कमें आता रहता हूँ, इसीसे मुझे ये दोष कुछ अधिक बड़े दिखाई देते हों अथवा मेरे खुदके काठियावाड़ी होने के कारण मेरे पास इन दोषोंके विषय में शिकायतें आती रहती हों। यदि ऐसा हो तो इसका अर्थ इतना ही हुआ कि ये दोष दूसरोंकी अपेक्षा काठियावाड़ियों में अधिक नहीं है। लेकिन में तो काठियावाड़के लोगोंसे निवेदन करूंगा कि उक्त दोष आपके बीच चाहे जितनी कम मात्रामें क्यों न हों उन्हें आप निकाल फेंकें, इससे आपका जीवन अधिक पवित्र होगा तथा आप अपनी और अपने देशकी अधिक सेवा कर सकेंगे।

हम दूसरोंसे बहुत खराब नहीं हैं, इस प्रकारके झूठे सन्तोषसे क्या लाभ? बल्कि प्रत्येक स्त्री-पुरुषका यह कर्त्तव्य है कि वह स्वतन्त्र रूपसे अपने दोषोंको निरख- परखकर उन्हें दूर करे। अतएव मुझे उम्मीद है कि जो अपनी बहादुरी और साहसके लिए प्रसिद्ध है वह काठियावाड़ी अपने सूक्ष्मसे-सूक्ष्म दोषको विवेकपूर्वक निकाल बाहर करेगा तथा साहस और बहादुरीका अपना गुण देशकी सेवामें अर्पित करेगा, एवं स्वर्गीय नवलरामने शुद्ध हृदयसे हमारे जिन दोषोंको देखा और वर्णित किया है उन्हें अपने भीतरसे दूर कर देगा।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, २५-४-१९२०

१३०. एक वर्ष पूरा हुआ

श्री हॉनिमैनको निर्वासित हुए २६ तारीखको एक वर्ष पूरा हो जायेगा पर हम उन्हें अबतक हिन्दुस्तान वापस नहीं ला सके । जब सम्राट्का घोषणा-पत्र प्रकाशित हुआ था तब लोगोंने सोचा था कि उसके अन्तर्गत श्री हॉनिमैनके मामलेपर भी विचार किया जायेगा। लेकिन बम्बईके गवर्नर महोदयने इस मामलेमें इस विचारसे ठीक उलटा निर्णय लिया और अबतक तो बात उन्हींकी रही है। श्री हॉनिमैनको वापस लानेकी बातके साथ नागरिक स्वातन्त्र्यके महान् सिद्धान्तका सवाल जुड़ा हुआ है। श्री हॉर्निमैनके व्यक्तिगत गुण-दोषोंको फिलहाल हम एक ओर रखें। मान लीजिए वे अपराधी हैं; लेकिन खूनीको भी आधुनिक प्रशासन-व्यवस्थाके अनुसार विधिपूर्वक जांच-पड़ताल किये बिना फाँसीपर नहीं चढ़ाया जा सकता और न कैद ही रखा जा सकता है। अभी बारह महीनोंके भीतरकी बात है, अहमदाबादमें एक व्यक्तिपर खूनका आरोप लगाया गया और उसे फाँसीकी सजा दी गई। यह सजा उसे विधिपूर्वक नियुक्त अदालतमें मुकदमा

१. उन्नीसवीं शताब्दीके एक गुजराती लेखक।

२. यह घोषणापत्र २३ दिसम्बर, १९१९ को जारी किया गया था, इसमें राजनतिक कैदियोंको राज्यकी ओरसे क्षमा प्रदान की गई थी।