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खादीके उपयोग

है। यदि हमने स्वदेशी वस्तुओंके प्रति एक अरुचिका भाव विकसित न कर लिया होता तो हम खादीमें निहित कला भी देख पाते। स्काटलैंडमें आज भी मशीनसे तैयार की गई [ऊनकी] ट्वीड, वहाँकी स्त्रियों द्वारा तैयार की गई ट्वीडका मुकाबला नहीं कर सकती। वहाँके उमरावोंने हाथसे बनी ट्वीडको पहनकर यह सिद्ध कर दिखाया हैं कि उसके खुरदरेपन में जो गर्मी और जो शोभा है, मशीनसे बनी महीन ट्वीडमें वैसी शोभा और गर्मी नहीं है। हाथकी बनी ट्वीड "फैशनेबल"-- कलात्मक मानी जाती है, इसलिए उसके दाम भी अधिक मिलते हैं।

यह हिन्दुस्तानका दुर्भाग्य है कि यहाँ हाथकी बनी खादीके वस्त्रोंको अपेक्षाकृत निम्न लोगोंके पहननेका कपड़ा माना जाता है, उसे कलाविहीन समझा जाता है। उसका कोई मूल्य नहीं औंका जाता तथा खादीके बुनकरको दिनभरमें मुश्किलसे आठ आने मिल पाते हैं। जिस देश में ऐसा उत्तम न्याय होता हो वहाँ कलाके सही मूल्यांकनकी क्या आशा की जा सकती है? ऐसे देशमें भुखमरी क्यों न हो? हाथके कला-कौशलके प्रति इस देश में सम्मानका कोई भाव नहीं है। धनाढ्य लोग यूरोपके मशीनी चमकदार मालकी चकाचौंधसे मुग्ध होकर उसे कला मान बैठे हैं। इसीसे उनके घरोंमें, उनके पहनावे में हिन्दुस्तान के हस्तकौशलको स्थान नहीं दिया जाता। सूरतके कलक्टर महोदयने एक बार स्वदेशी आन्दोलनकी टीका करते हुए मुझसे कहा: “देखिए मैंने अपने दीवानखानेमें स्वदेशी कारीगरीको कितना स्थान दिया है, तथा वहाँ निगाह डालिए, कितनी कलात्मक हैं ये वस्तुएँ; जरा अपने धनवान मित्रोंसे मेरे इस कामकी तुलना कीजिए और तब बताइए कि स्वदेशीको कौन प्रोत्साहन देता है। " उनका कहना सही था। उसे सुनकर में लज्जित हुआ। मेरी दृढ़ मान्यता है कि जब हिन्दुस्तानके लोग हाथके बने कपड़ेको पहनने में गर्वका अनुभव करेंगे, जब खादीमें निहित कलाकी खातिर उसके उचित दाम देंगे तब हिन्दुस्तान से भुखमरी जायेगी और गरीब लोग जिन्हें अनाजके भी लाले पड़े हुए हैं, भरपूर अनाज पायेंगे।

आज तो मेरे पास बहुतसी खादी ही पड़ी हुई है। ऐसी स्थिति आ पड़ी है कि हमें गरीब बहनों और भाइयोंको अपना काम रोकनको कहना पड़ेगा। इसलिए मेरे सामने कुछ- एक स्वयंसिद्ध बातोंको सिद्ध करनेकी जरूरत आ पड़ी है। कोट, अँगरखा आदि मुझे तो खादीके ही सुन्दर लगते हैं। लेकिन यदि मैं पाठकोंको इतनी दूरतक नहीं ले जा सकता तो इतना अवश्य कहना चाहता हूँ कि खादीके अन्य और बहुत से उपयोग हैं। खादीके बस्ते बनते हैं, खादीके झोलीनुमा झूले बनते हैं। कुर्सी, कोच आदिपर खादीके गिलाफ चढ़ाये जा सकते हैं। रंगीन खादीकी बड़ी-बड़ी जाजमें और चँदोवे बनते हैं। संक्षेप में उसके हर आकारके रुमाल, छन्न, थैलियाँ, खोल, गिलाफ, आदि अनेक प्रकारकी उपयोगी वस्तुएँ बन सकती हैं। खादीका प्रचार करने में मैं प्रत्येक पाठककी सहायता मांगता हूँ। खादीको लाल स्वदेशी रंगमें रँगनके लिए एक रँगरेज भी मिल गया है। इसकी सहायतासे में कुछ खादीको लाल रंग में रँगवा रहा हूँ। खोल आदिके लिए रँगी हुई खादी अधिक उपयोगी होगी। प्रत्येक पाठकसे में इतना याद रखनेका अनुरोध करता हूँ कि हाथ-कताईके उद्योगमें इस