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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हो जायें---जो केवल भारतके शिक्षित वर्गकी ही नहीं बल्कि अन्य किसी भाषाको अपेक्षा जनसमूह द्वारा अधिक व्यवहृत हो और जिसके जरिये हम विश्वके साहित्य और वैज्ञानिक प्रगतिके क्षेत्रमें सहज ही प्रवेश पा सकें।

यद्यपि आयोगके सामने प्रस्तुत साक्ष्यको देखते हुए आयुक्तोंको विश्वविद्यालयों में भी देशी भाषाओंके प्रयोगके पक्षमें भावी नीति निर्धारित करनेके लिए तो राजी नहीं किया जा सका, लेकिन यह भी इतना ही सही है कि साक्ष्य में उनको ऐसा कुछ नहीं मिला जो अंग्रेजीके हिमायतियों या द्विभाषा-समर्थकोंकी दलीलोंका समर्थन करता हो। इस प्रकार यद्यपि आयुक्तोंके प्रश्नोंके उत्तर भविष्यका निर्णय आप नहीं करते फिर भी वे यह तो

प्रकट करते हैं कि विश्वविद्यालयोंके कुछ कामोंमें तुरन्त और सभी कामोंमें अन्ततोगत्वा बॅगलाका प्रयोग शुरू करनेके पक्षमें एक प्रबल आन्दोलन मौजूद है,एक ऐसा आन्दोलन जिसका कोई आभास १९१५ की शाही विधान परिषद्की बहसमें नहीं मिलता।

आयुक्तोंने उत्तरोंकी जो व्याख्या की यदि हम उसका अध्ययन करें तो उनके कथनको अधिक सही रूपमें पूरी तरह समझ सकेंगे। गवाहोंसे प्रश्न किया गया था 'क्या आपका विचार है कि मैट्रिकसे ऊपर विश्वविद्यालयोंके पाठ्यक्रममें हर स्तरपर प्रशिक्षण और परीक्षाका माध्यम अंग्रेजीको बनाना चाहिए? 'प्राप्त उत्तरोंका वर्गीकरण इस प्रकार है :-

(१) १२९का जवाब निश्चय ही स्वीकारात्मक है।

(२) २९का जवाब स्वीकारात्मक तो है पर कुछ किन्तु-परन्तुके साथ।

(३) ६८ ने एक ही शिक्षा संस्था में एक साथ या दो समान संस्थानों में अंग्रेजी और देशी भाषाके संयुक्त प्रयोगके पक्षमें मत दिया।

(४) ३३ उत्तरोंमें देशी भाषाओंको क्रमशः अंग्रेजीके स्थान में रखनेका उद्देश्य रखनेकी बात सुझाई गई है।

(५) ३७ उत्तर विरोधमें हैं; और

(६) ९ उत्तर किसी वर्गमें नहीं रखे जा सकते।

इस प्रकार १५५ जवाब अंग्रेजी माध्यमके पक्षमें हैं और लगभग १३८ देर-सबेर देशी भाषाको शिक्षाका माध्यम बनाने के विरुद्ध नहीं हैं। निश्चय ही यह अनुपात देशी भाषाओंके हिमायतियोंका उत्साह बढ़ानेवाला है। इसके अलावा अंग्रेजी-माध्यम- की हिमायत करनेवाले लोगोंका काफी बड़ा भाग ऐसा है जो विदेशी माध्यमकी सलाह सिर्फ इसलिए देता है कि विभिन्न विषयोंपर सही किस्मकी यथेष्ट पाठ्यपुस्तकोंकी व्यवस्था नहीं है। ये शिक्षा शास्त्री भी सिद्धान्ततः देशी भाषाओंके माध्यमके विरोधी नहीं हैं। वे नहीं चाहते कि हम तैरना सीखे बिना ही पानी में उतर पड़ें। बाकी गवाहीका साक्ष्य इसी तरहका परन्तु अधिक निश्चयात्मक है, जो अंग्रेजी माध्यमका समर्थन करता है। शेष साक्ष्य देशी भाषाओंको शिक्षा के माध्मयके रूप में अनुपयुक्त करार दिया