पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/४००

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३६८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

महामहिम सम्राट्के साम्राज्य के इन विभिन्न भागों में प्रवासी भारतीयोंके हितोंकी रक्षा करना भारत सरकारके लिए कोई आसान काम नहीं है । अत्यन्त दृढ़ और सुसंगत नीति अपनाकर ही वह ऐसा कर सकेगी। न्याय भारतीय प्रवासियोंके पक्षमें है। किन्तु वे दुर्बल पक्षके हैं। यदि भारत में एक प्रबल प्रचार-आन्दोलन खड़ा किया जाये और उसके बाद भारत सरकार जोरदार कार्रवाई करे तभी यह संकट टल सकता है।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, २१-४-१९२०

१२६. देशी भाषाओंका हित

हाल में हुए साहित्य-सम्मेलनोंकी कार्यवाहीकी खोज-खबर रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति- को यह स्पष्ट हो गया होगा कि हमारी राष्ट्रीय जाग्रति केवल राजनीतितक ही सीमित नहीं है। इन जलसोंमें जो उत्साह देखने में आया वह एक शुद्ध परिवर्तनका द्योतक है। वैचारिक रूपसे हम अपने राष्ट्रीय जीवनमें मातृभाषाओंको उनका उचित स्थान देने लगे हैं। राजा राममोहनरायकी भविष्यवाणी थी कि एक दिन भारत अंग्रेजी भाषा-भाषी देश बन जायेगा। लेकिन आज उसका समर्थन करनेवाले प्रतिष्ठित लोग इन-गिने ही हैं। फिर भी उस महान् सुधारककी भावना अभी कुछ लोगोंपर हावी है। हमारे देशमें कई ऐसे प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं जो जल्दबाजी में अंग्रेजीको राष्ट्रभाषा बनाने के पक्ष में अपना मत व्यक्त कर देते हैं। अदालती भाषा के रूप में अंग्रेजीका वर्तमान दर्जा उनके विचारमें जरूरतसे ज्यादा महत्त्व रखता है। वे नहीं समझ पाते कि अंग्रेजोका वर्तमान दर्जा हमारे लिए कोई गौरवकी बात नहीं है और न वह एक सच्ची जनतान्त्रिक भावनाके विकासमें सहायक ही है। करोड़ों आदमी कुछ- सौ अधिकारियोंकी सुविधाके लिए एक विदेशी भाषा सीखें, यह परले दर्जेकी हिमाकत है। देशकी केन्द्रीय सरकारको मजबूत करनेके लिए एक सर्वसामान्य माध्यमकी आवश्यकता प्रमाणित करनेके हेतु बहुधा हमारे विगत इतिहाससे उदाहरण पेश किया जाता है। एक सामान्य माध्यमकी आवश्यकतापर किसीको आपत्ति नहीं। परन्तु वह माध्यम अंग्रेजी नहीं हो सकती। अधिकारियोंको देशी भाषाओंको मान्यता देनी पड़ेगी। अंग्रेजीके पक्षपातियोंको जो दूसरी बात अपील करती है वह है साम्राज्य में भारतकी स्थिति। सीधे शब्दों में कहा जाये तो उनके तर्कका अर्थ यही निकलता है कि साम्राज्यके अन्य हिस्सोंके लाभार्थ---जिनकी जनसंख्या १२ करोड़से अधिक नहीं--- ३१ करोड़ भारतीयोंको अपनी सामान्य भाषाके रूपमें अंग्रेजीको ही स्वीकार करना चाहिए।

१० (१७७२-१८३३); बंगालके समाज-सुधारक, जो भारतमें अंग्रेजी शिक्षाके प्रचारकोंमें अग्रणी थे; उन्होंने भारतको प्रगति पथपर आरूद करने के उद्देश्यसे कई आन्दोलनोंका सूत्रपात किया वा।