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विदेशों में भारतीय

गन्ध आई है, यह वही सरकार है जिसने श्री एन्ड्रयूज-जैसे व्यक्तिके चरित्रपर कीचड़ उछालनेकी अशिष्टता दिखाई थी। फीजीके हड़तालियों और श्री मणिलाल डाक्टरके सम्बन्धमें राजद्रोहके आरोपका अर्थ क्या हो सकता है? क्या वे और मणिलाल डाक्टर सरकारपर कब्जा करने गये थे? क्या वे उस देशमें कोई सत्ता प्राप्त करना चाहते थे? उन्होंने मूलभूत स्वतन्त्रताकी रक्षाके लिए हड़ताल की अतः इस सम्बन्धमें राज- द्रोह शब्दका प्रयोग करना शब्दोंका दुरुपयोग करना है। सम्भव है, हड़तालियोंने अत्य- धिक उतावलीसे काम लिया हो, सम्भव है श्री मणिलाल डाक्टरने उन्हें गुमराह किया हो। यदि उनकी सलाह अपराधकी सीमातक पहुँचती थी तो उनपर मुकदमा चलाना चाहिए था। प्राप्त सूचनाके अनुसार यही प्रकट होता है कि उन्होंने बिल्कुल कानूनके अनुसार काम किया है। किन्तु हमारा मुद्दा तो यह है कि फीजी सरकार द्वारा मुकदमा चलाये बगैर श्री मणिलाल डाक्टरको फीजीसे निर्वासित करना सत्ताका दुरुपयोग है। किसी व्यक्तिको अपने चरित्रकी शुद्धता बतानेका अवसर दिये बिना सन्देह- मात्रपर उसकी स्वतन्त्रतासे वंचित करना सिद्धान्ततः अनुचित है। याद रखना चाहिए कि श्री मणिलाल डाक्टर पिछले अनेक वर्षोंसे फीजीको ही अपना घर बना चुके हैं। हमारा खयाल है कि वहाँ उन्होंने जायदाद भी खरीद ली है। उनके बच्चे फीजी में पैदा हुए हैं। क्या इन बच्चोंके कोई हक नहीं है? क्या उनकी पत्नीके भी कोई हक नहीं हैं? क्या मनमानी करनेवाली सरकारके हाथों एक होनहार व्यक्तिकी सारी प्रगति चौपट कर दी जायेगी? क्या श्री मणिलाल डाक्टरको इससे जो क्षति उठानी पड़ेगी उसकी पूर्तिकी व्यवस्था कर दी गई है? हमें विश्वास है कि भारत सरकार, जिसने विदेशों में बसे हुए भारतीयोंके अधिकारोंकी रक्षा करनेका प्रयत्न किया है, श्री डाक्टरके निर्वासनके प्रश्नको उठायेगी।

फोजी ही एकमात्र ऐसा स्थान नहीं जहाँ सत्तारूढ़ वर्ग में न्यायके साथ मन- मानी करने की यह प्रवृत्ति बिलकुल ऊपर झलक आई है। (विगत जर्मन) पूर्वी आफ्रिका- के भारतीय अपनी दशा पहलेसे बदतर पाते हैं। उनका कहना है कि उनकी सम्पत्ति सुरक्षित नहीं रह गई है। उ पारपत्रोंपर तरह-तरहके शुल्क देने पड़ते हैं। उनके व्यापार भी रुकावटें डाली जाती हैं। वे मनीऑर्डरतक नहीं भेज पाते।

ब्रिटिश पूर्वी आफ्रिका में संकटके ये बादल शायद सबसे अधिक घने हैं। वहाँके गोरे प्रवासी भारतीय प्रवासियोंको उनके अबतक प्राप्त लगभग सभी अधिकारोंसे वंचित करने के लिए शक्ति-भर प्रयत्न कर रहे हैं। कानून बनाकर और प्रशासनिक कार्रवाईके जरिये भी उनको पूरी तरह नष्ट करनेका प्रयत्न किया जा रहा है। दक्षिण आफ्रिका में प्रत्येक भारतीय, जिसका ब्रिटिश डोमीनियनके उस भागसे कोई सम्बन्ध है, साँस रोककर उस आयोगकी कार्रवाईकी प्रगतिको देख रहा है जिसकी बैठकें इस समय चल रही हैं।

१. इस जाँच आयोगकी बैठक मार्च १९२० से जुलाई १९२० तक हुई थीं । दक्षिण आफ्रिकी संघ सरकारने इसकी नियुक्ति दक्षिण आफ्रिकाके अनेक प्रान्तोंमें एशियाई व्यापार और भू-धारणके प्रश्नकी जाँच करनेके लिए की थी ।