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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

(३) मौजूदा करघों और चरखोंमें सुधार कीजिए, और यदि आप धनी हैं तो जो लोग उनको बना सकते हैं उन्हें उनकी बनवाई दीजिए।

(४) स्वदेशीकी प्रतिज्ञा कीजिए और हाथसे कते सूतके, हाथसे ही बुने कपड़ेको अपनाइये।

(५) अपने मित्रोंमें ऐसे कपड़ोंका प्रचलन कीजिए और यह विश्वास कीजिए कि उस खादी में अधिक कला और मानवीयता है जिसका सूत आपकी गरीब बहिनोंने तैयार किया है।

(६) यदि आप माता हैं, आप अपने बच्चोंको एक निर्दोष और राष्ट्रीय संस्कृति देंगी और उन्हें सुन्दर खादीके बने कपड़े पहिनायेंगी- -- उस खादीके जो करोड़ों लोगोंको सुलभ है, जिसे अत्यन्त सुगमतासे तैयार किया जा सकता है। तब स्वदेशीका अर्थ अपने आप में एक ऐसे पूर्ण संगठनकी रचना है जिसके सभी भाग परस्पर पूर्ण समस्वरताके साथ काम करते चलें। यदि हम ऐसा संगठन बनाने में सफल हो जायें तो न केवल स्वदेशीकी सफलता सुनिश्चित हो जायेगी बल्कि हम सच्चे स्वराज्यकी यथासमय प्राप्तिके मार्गपर आरूढ़ हो जायेंगे।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, २१-४-१९२०

१२५.विदेशोंमें भारतीय

भारतके बाहर बसे भारतीय प्रवासियोंके प्रति विद्यमान पूर्वग्रह विविध प्रकारसे प्रकट हो रहा है। फीजी सरकारने राजद्रोहका धृष्टतापूर्ण आरोप लगाकर श्री मणि- लाल डाक्टरको, जो अपनी वीरांगना और सुसंस्कृता पत्नीके साथ फीजीके गिरमिटिया भारतीयोंकी अनेक तरहसे सहायता कर रहे थे, निर्वासित कर दिया है। अब यह सारा झगड़ा फीजी में मजदूरोंकी हड़तालसे आरम्भ हुआ है। गिरमिट रद कर दिये गये हैं, किन्तु दासताकी भावना बिलकुल ही नहीं मरी है। हम नहीं जानते कि हड़ताल किस बातको लेकर हुई। हम यह भी नहीं जानते कि हड़तालियोंने कोई अनुचित काम नहीं किया है। किन्तु जब हड़तालियों और उनके मित्रोंपर राजद्रोहका आरोप लगाया जाता है तो हम यह अवश्य जानते हैं कि उसके पीछे क्या है। पाठकोंको अवश्य ही याद रखना चाहिए कि फीजीकी अभी हालकी उथल-पुथलमें जिस सरकारको राजद्रोहकी

१. ३१ मार्च, १९२० को अहमदाबाद में गांधीजीकी उपस्थितिमें चरखेके परिष्कृत नमूनेको पुरस्कृत करनेके लिए एक प्रतियोगिताका आयोजन किया गया था।

२. गांधीजीके एक पुराने साथी डा० प्राणजीवन मेहताके दामाद। वे १९१२ में सार्वजनिक कार्यके लिए फीजी गये थे।

३. जयकुँवर ।

४. फोजीकी विधान परिषदने अगस्त १९१९ में गिरमिट-प्रथाको समाप्त करनेका संकल्प किया था। गिरमिट प्रथा १८७७ में चालू हुई थी।