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१२४. स्वदेशी

राष्ट्रीय सप्ताह १३ अप्रैल मंगलवारको समाप्त हो गया। वह हर प्रकारसे हिन्दू-मुस्लिम एकताका, रौलट ऐक्टको रद करानेके संकल्पका और सत्याग्रहकी भावनाका एक उल्लेखनीय प्रदर्शन था। जो भाषण दिये गये वे पहलेकी अपेक्षा अधिक संयत और प्रसंगानुकूल थे। हमें जिन सभाओंके समाचार मिले हैं, उनमें किसीमें कोई गड़बड़ी नहीं हुई।

किन्तु स्वदेशी? क्या स्वदेशी, सत्याग्रहकी भावना और उसके व्यवहारकी देन नहीं है? निस्सन्देह वह सत्याग्रहकी देन है। किन्तु स्वदेशीका कार्य सब कार्योंसे अधिक रचनात्मक है। उसमें भाषणोंकी उतनी गुंजाइश नहीं जितनी कि ठोस कार्यकी। भाषणों या प्रदर्शनोंसे पचास करोड़ रुपये सालानाकी बचत करना सम्भव नहीं है । और प्रतिवर्ष इस रुपयेको बाहर जाने से बचानेकी ही बात इसमें नहीं है, बल्कि उससे भी कुछ अधिक है। इसमें भारतीय नारीकी मर्यादाका प्रश्न भी निहित है। मिल- उद्योगसे थोड़ा भी सम्बन्ध रखनेवाला प्रत्येक व्यक्ति जानता है कि कारखानों में काम करनेवाली स्त्रियाँ ऐसे प्रलोभनों और खतरोंके बीच रहती हैं जिनसे उनको बचाना चाहिए। बहुत-सी स्त्रियाँ गृह-उद्योगके अभाव में सड़कोंकी मरम्मतकी मजदूरी स्वीकार कर लेती हैं और केवल वे लोग ही जो जानते हैं कि यह काम कैसा होता है, उन खतरोंको जानते हैं जिन्हें ये स्त्रियाँ मोल लेती हैं। उन्हें चरखा दे दीजिए। तब किसी स्त्रीको चरखा चलाने के अतिरिक्त कोई दूसरा काम ढूंढ़नेकी आवश्यकता ही नहीं रहेगी। स्वदेशीका अर्थ है सम्पदाका समान वितरण। वह भी एक ऐसे धन्धेके जरिये जो महत्त्व- क्रम में केवल कृषिके ही बाद आता है। यह कृषिका अनुपूरक है और इसलिए स्वतः ही हमारी वर्द्धमान दरिद्रताकी समस्याको हल करनेमें ठोस मदद देता है। इसलिए स्वदेशी हमारे लिए सचमुच कामधेनु ही है जो हमारी सभी आवश्यकताओंकी पूर्ति करता है और हमारी अनेक कठिन समस्याओंको हल करता है। यह एक ऐसा धन्धा है जो हमारी प्रतिष्ठाकी रक्षा करता है और हमें जीविका देता है, इसलिए यह हमारा धार्मिक कर्त्तव्य बन जाता है।

यह महान् संसिद्धि किस प्रकार प्राप्त की जाये? उत्तर सीधा है। इस समस्याका महत्त्व समझनेवाले लोगोंको निम्नलिखित सभी या इनमें से किसी एक दिशामें प्रयत्नशील हो जाना चाहिए।

(१) स्त्री हो या पुरुष स्वयं कातना सीखे। यदि आपको रुपयेकी आवश्यकता है तो अपने श्रमकी मजदूरी लीजिए या प्रतिदिन कमसे-कम एक घंटेका श्रम राष्ट्रके लिए दान कर दीजिए।

(२) मनोरंजन या निर्वाहके लिए स्वयं कपड़ा बुनना सीखिए।