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टिप्पणियाँ

सरलादेवीने मुझे बताया कि उन्होंने तुम्हें कल एक पत्र लिखा है। कल मज- दूरोंके समक्ष मैंने जो भाषण दिया था उसे मैं तुम्हारे पास भेज रहा हूँ।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (एस० एन० ७१६७) की फोटो-नकलसे।

१२३. टिप्पणियाँ'

साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व

अब चूँकि मुसलमानोंके लिए साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्वका सिद्धान्त स्वीकार किया जा चुका है, इसलिए अन्य कुछ छोटे-छोटे समुदायोंकी ओरसे भी साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्वकी बड़ी बेसिर-पैरकी माँगें उठने लगी हैं। ये माँगें बिलकुल ही बेबुनियाद हैं, लेकिन जब बर्माके भारतीय भी साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्वकी माँग करने लगते हैं तो उसे सिर्फ एक बेबुनियाद माँग नहीं कहा जा सकता। वह एक अपराधपूर्ण माँग बन जाती है। हमें मालूम हुआ है कि रंगूनके कुछ भारतीयोंने सुधारोंके फल- स्वरूप बननेवाली बर्मा-परिषद्‌में अपने लिए अलगसे साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्वकी मांग उठाई है। हमें तो आशा है कि कोई अनर्थ होने से पूर्व ही यह माँग वापस ले ली जायेगी। बर्मी लोगोंको वहाँ बसे भारतीयों द्वारा किये जानेवाले ऐसे पक्षपातपूर्ण व्यव- हारपर रोष प्रकट करनेका पूरा अधिकार है। हम अपने और बर्मी लोगोंके पारस्परिक हित-साधनके लिए उनके अतिथिके रूपमें ही बर्मा गये हैं, न कि उनका शोषण करने। सबसे पहले हमें उनकी भलाईका विचार करना चाहिए। जैसा कि एक मित्रने निर्देश किया है, जो सही भी है, कि बर्मामें भारतीयोंकी यह मांग उठाना कुछ ऐसा ही होगा जैसे बंगाल परिषद् में गुजरातियों या मारवाड़ियोंका अपने लिए अलग साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्वकी मांग करना। निश्चय ही बर्माके भारतीयोंको बर्मा- परिषद् प्रवेश करनेका अधिकार होगा लेकिन तभी जब वे अपनी योग्यता और सेवासे बर्मी लोगोंके मत प्राप्त कर सकें। चूँकि हम लोग चाहते हैं कि भारतमें कोई भी व्यक्ति ऐसा कोई दावा न करे जो हमारे हितोंके विरुद्ध पड़ता हो, इसलिए हमें भी यह सावधानी तो रखनी पड़ेगी कि हम बर्मामें कुछ ऐसे अधिकार प्राप्त करनेकी इच्छा न करें जो बर्मी लोगोंके हितोंके विरुद्ध पड़ते हों। लेकिन बर्मामें बसे भारतीयों- की साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्वकी माँगके मूलमें ठीक यही बात--बर्मी जनताके हितोंका विरोध ही--है। इसलिए हम विश्वास करते हैं कि लोग समझदारीसे काम लेंगे और हमें बर्माके भारतीयोंके लिए अलग प्रतिनिधित्वकी माँग फिर सुनाई न देगी।

१. गांधी स्मारक निधिमें सुरक्षित मसविदोंके आधारपर यह तथा अगले दो लेख गांधीजी द्वारा लिखित माने गये हैं। मसविदे गांधीजीके स्वाक्षरोंमें हैं।

२. १९०९ और १९१९ के भारत सरकारके अधिनियमोंमें।