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भाषण: अहमदाबादके मिल-मजदूरोंकी सभा में

परमाणु-मात्र में यह आकर्षण शक्ति न हो तो ब्रह्मांड चूर-चूर हो जायेगा और फलस्वरूप हम भी जीवित नहीं रहेंगे। जड़ पदार्थोंमें एक दूसरेसे चिपके रहने की शक्ति है। उसी प्रकारकी शक्ति चेतन पदार्थों में अर्थात् हम लोगोंमें भी होनी चाहिए। आकर्षण शक्तिका दूसरा नाम प्रेम है। प्रेमके अभाव में भी संसार टिक नहीं सकता। पिता-पुत्रके बीच, बहन-भाईके बीच और मित्र-मित्रके बीच हम ऐसा प्रेम पाते हैं। परन्तु समस्त संसारके प्रति प्रेम रखनेकी कला जानना ईश्वरको पहचानना है। जहाँ प्रेम है वहाँ क्षेम है और जहाँ बैर है वहाँ नाश है। मैं चाहता हूँ कि प्रेमके इस नियमको सीखनेमें अनसूयाबेन आपकी सहायक हों। अपने प्रति उनके प्रेमको देखकर उसका बदला आप समस्त संसारके प्रति प्रेम-भाव रखकर चुकावें--मैं आपसे यही भीख माँगता हूँ ।

तीसरा नियम अपने विषयोंपर काबू पाना है । संस्कृत में इस नियमको ब्रह्मचर्य कहते हैं। आजकल ब्रह्मचर्यका संकुचित अर्थ लगाया जाता है। उसका वह अर्थ तो है ही; परन्तु जो व्यक्ति भोग-विलासमें रत रहता है वह अविवाहित हो चाहे एक पत्नी- व्रतका पालनेवाला, ब्रह्मचारी नहीं माना जा सकता । जो व्यक्ति सभी प्रकारके विषयोंपर अंकुश रख सकता है वही अपनेको पहचान सकता है । जो व्यक्ति अपनी इच्छाओंपर निग्रह रखता है वही ब्रह्मचारी, वही ईमानदार, वही सच्चा हिन्दू और वही खरा मुसलमान है। कानोंसे गन्दी बातें या दूषित गाने सुनना ब्रह्मचर्य खण्डित करनेके समान है। परमेश्वरका नाम लेने के बजाय रसनासे भद्दे शब्द निकालना, बिना गालीके बात न करना भी ब्रह्मचर्य खण्डित करना या विषयोंमें रत रहना माना जायेगा। इसी प्रकार अन्य कर्मेन्द्रियोंके बारेमें समझना चाहिए। जो व्यक्ति अपनी समस्त इन्द्रियोंका संयम करते हुए उन्हें अपने वश में रख सकता है वही व्यक्ति मर्द कहलाने योग्य है। हमें अपनेको एक घुड़सवार-जैसा मानना चाहिए। जो सवार अपने घोड़ेको काबू में नहीं रख पाता, वह सवार गिरे बिना नहीं रहता और जो सवार घोड़ेकी लगाम थामकर उसे नियंत्रण में रखने में समर्थ है वह सवार निर्दिष्ट स्थान- पर पहुँच जाता है। उसी प्रकार जो पुरुष अपनी इन्द्रियोंको वशमें रखता हुआ सीधे रास्ते चला जाता है वह ठिकानेपर पहुँचने में समर्थ होता है। वही पुरुष स्वर्ग अथवा जगत्का अधिकारी बनता है और वही पुरुष मोक्षार्थी अथवा ईश्वरको पह- चान सकता है।

मेरा आपसे एक निवेदन है -- वह यह कि आप यह समझें कि मैंने आप लोगोंके सामने एक बहुत गम्भीर विषय छेड़ा है और आप इसे भुला न दें।

आप निश्चित मानिए कि सत्य आदि, इन नियमोंके पालनके बिना हमारी उन्नति कदापि नहीं हो सकती । मैंने आप लोगोंके समक्ष किताबोंसे पढ़कर रटी हुई कोई बात नहीं रखी है बल्कि जो कुछ कहा अपने अनुभवसे कहा है । आप लोगोंके साथ सम्बन्ध बनानेका मेरा कारण केवल यही है कि आप सबके प्रति प्रेमभाव रख- कर और लोगोंके कष्टोंको अपना कष्ट मानकर शायद मैं परमात्माको पहचान सकूँ और उसका साक्षात्कार कर पाऊँ। अगर आप सत्यवादी नहीं बन सकते, अगर आप दूसरोंको पीड़ित करनेवाले राक्षस बनना चाहते हैं, दिन-रात विषयोंका हो चिन्तन