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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वाचनालयोंकी स्थापना करें और उनके लिए निर्दोष मनोरंजन और खेलकूदकी व्यवस्था करें तो मजदूर अपने व्यसन सहज ही छोड़ देंगे।

ऐसे कार्य तो मण्डलों (यूनियनों) द्वारा भी किये जा सकते हैं और उन्हें ये काम करने भी चाहिए। मालिकोंके खिलाफ संघर्ष करने के उपाय खोजनेकी अपेक्षा इसमें उनके समयका अधिक अच्छा उपयोग होगा कि वे मजदूरोंकी भीतरी हालत सुधारनेमें लग जायें।

कार्यका बँटवारा

मजदूर अपने बच्चों की पढ़ाई छुड़वाकर उनसे मजदूरी करवाते हैं, यह तो बहुत ही शोचनीय परिस्थिति है। अच्छे माने जानेवाले समाजके सदस्य अपने बच्चोंका ऐसा दुरुपयोग कभी नहीं करते। कमसे-कम १६ वर्षकी आयुतक बालकोंको पढ़ाना-लिखाना ही चाहिए। उसी प्रकार स्त्रियोंको भी क्रमशः मिलोंकी मजदूरी करना छोड़ते जाना चाहिए। यदि स्त्री और पुरुष एक दूसरेके सच्चे सहयोगी हैं तो वे अपने कामके क्षेत्रोंका बँटवारा करके ही अच्छे गृहस्थ बन सकते हैं। चतुर माताएँ अपने समयका अच्छेसे- अच्छा उपयोग घरके काम-काजमें व्यस्त रहकर तथा बालकोंकी उचित देखभाल करके ही कर सकती हैं। जिस देशमें पति और पत्नी दोनोंको केवल आजीविकाके निमित्त मजदूरी करनी पड़ती हो, उस देशकी जनता अन्ततोगत्वा कंगाल हो जाती है, क्योंकि ऐसा कृत्य करनेवाला समाज दिवालियोंकी भाँति अपनी पूंजीमें से ही अपना गुजारा करता है।

नैतिक शिक्षाको आवश्यकता

मजदूरोंको अपने तथा अपनी संतानके लिए अक्षर-ज्ञानके द्वारा बुद्धिके विकासकी जितनी आवश्यकता है, नैतिक शिक्षा प्राप्त करनेकी भी उतनी ही आवश्यकता है। नैतिक शिक्षा अर्थात् धर्म-बुद्धिका विकास। जिस व्यक्तिके हृदय में धर्म के प्रति निष्ठा आ गई है और जो उसके स्वरूपको समझ गया है, एक तो उसके साथ संसार झगड़ता ही नहीं और यदि झगड़ेका अवसर आ जाय तो वह व्यक्ति विनयपूर्वक अपने विरोधियोंके रोषका शमन कर देता है। यहाँ धर्मका अर्थ नमाज पढ़ना या मन्दिरोंमें जाना नहीं है, बल्कि अपने आपको और ईश्वरको पहचानना है। जिस प्रकार किसी व्यक्तिको यदि बुनना नहीं आता तो वह बुनकर नहीं हो सकता, उसी प्रकार जो व्यक्ति कुछ निश्चित नियमोंके अनुसार आचरण नहीं करता वह अपनेको नहीं पहचान सकता। ऐसे नियमोंमें तीन मुख्य नियम हैं, जिन्हें सारे जगत्न अंगीकार किया है। पहला है सत्य-पालन, जो सत्य नहीं बोलता वह किसी खोटे सिक्केके समान मूल्यरहित हैं। दूसरा नियम दूसरोंको पीड़ा न पहुँचाना है; जो व्यक्ति दूसरोंको पीड़ित करता है, दूसरोंसे द्वेष करता है, या उनको नुकसान पहुँचाता है ऐसा व्यक्ति संसारमें रहने योग्य नहीं है, क्योंकि सारा संसार उसके प्रति शत्रुभाव रखता है। और इस कारण वह हमेशा संसारसे और संसार उससे भयभीत रहता है। पृथ्वी प्रेम-सूत्रमें बँधी हुई है। प्रत्येक वस्तुमें आकर्षण शक्ति है। इसीलिए हमारा अस्तित्व टिका है। वैज्ञानिकोंका कथन है कि यदि