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भाषण: अहमदाबादके मिल-मजदूरोंकी सभामें

प्रत्येक विभागके मजदूर अपने-अपने विभागका मण्डल बना लेंगे और फिर प्रत्येक मजदूर उसके द्वारा बनाये गये नियमोंका यथावत् पालन करेगा। मजदूर इन मण्डलोंके द्वारा ही मालिकोंके सामने अपनी मांगें पेश किया करें और अगर माँगें पूरी न हों तो पंच नियुक्त कराये जायें। सन्तोषकी बात है कि दोनों पक्षोंने पंचों द्वारा झगड़े निपटानेका सिद्धान्त स्वीकार कर लिया है। आशा है कि दोनों पक्ष इस सिद्धान्तका पूरा-पूरा विकास करेंगे और हड़ताल वगैरा हमेशाके लिए समाप्त हो जायगी। इसमें शक नहीं कि न्याय प्राप्त होनेपर मजदूरोंको हड़ताल करनेका हक है, परन्तु पंचायतों द्वारा झगड़े निपटानेका मार्ग स्वीकार कर लिये जाने के पश्चात् हड़ताल करना पाप माना जाना चाहिए। मजदूरीमें वृद्धि उचित रीतिसे ही हुआ करती है और धैर्य धारण करनेसे आगे भी वृद्धि की सम्भावना है। परन्तु मजदूरीमें वृद्धिकी तरह ही मजदूरीके घंटोंमें कमी करना भी आवश्यक है। आज तो मजदूर रोजाना बारह घंटे या उससे भी अधिक समयतक काम करते हैं। इतने घंटे नित्य काम करनेके फलस्वरूप श्रमिकको अपनी मानसिक या नैतिक दशा सुधारनेका अवकाश नहीं मिल सकता और उसकी हालत पशु-जैसी हो जाया करती है। हमें ऐसी परिस्थितिमें से निकलना ही चाहिए। फिर भी हमें यह बात याद रखनी चाहिए कि देशके उद्योगको नुकसान न पहुँचने पाये। मिल-मालिकोंकी ओरसे मुझे यह सुननेको मिलता है कि मजदूर लोग आलस्य करते हैं, वक्तकी चोरी करते हैं और सावधानीसे काम नहीं करते। दिनमें बारह घंटे काम करनेवाले मजदूरसे सावधानी या लगनके साथ काम करनेकी आशा नहीं की जा सकती, परन्तु जब मजदूर केवल दस घंटे रोज काम करनेकी उम्मीद कर रहे हैं तब मैं भी यह आशा अवश्य करता हूँ कि जितना काम वे बारह घंटमें करते हैं उतना ही नहीं बल्कि उससे अधिक काम दस घंटेमें करके दिखा देंगे। इंग्लैंडमें कामके घंटोंमें कमी करनेका परिणाम शुभ ही निकला है। अगर मजदूर अपनेको केवल मजदूर न मानकर मालिकोंक कामको अपना काम समझने लगें और कार्यकुशलता बढ़ाते रहें तो उनकी उन्नति होगी और देशका उद्योग भी उन्नत होगा। इसलिए मैं मालिकोंसे निवेदन करूँगा कि वे कामके घंटे बारहकी जगह दस कर दें और मजदूरोंको यह परामर्श देता हूँ कि वे बारह घंटेका काम दस घंटे में ही कर डाला करें।

मजदूरी बढ़ जानेपर

अब मैं उस बातपर आता हूँ कि जो मजदूरी प्राप्त होती है और जो समय कामके बाद बच रहता है उसका उपयोग किस प्रकार करना चाहिए। बढ़ी हुई दरोंसे प्राप्त अधिक मजदूरीको नशेबाजी इत्यादि व्यसनोंमें फूंक देना और बचे हुए समयको जुएके अड्डोंमें बिता देना तो ऐसा होगा जैसे कोई खाईसे बचकर खंदकमें गिरे। शराब, बीड़ी इत्यादिके व्यसनको छोड़कर और इस प्रकार पैसे बचाकर अपनी तथा अपने कुटुम्बकी शिक्षामें लगाने चाहिए। समयको जुए या गपशपमें खराब न करके विद्योपार्जनमें व्यतीत करना चाहिए । इन दोनों कार्यों में मिल-मालिक बहुत सहायता कर सकते हैं। यदि वे मजदूरोंके लिए स्वच्छ दूध और जलपान आदिकी दुकानें खोलें,