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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

क्रोधको जीत लिया है ऐसा माना जायेगा। हम इस कसौटीपर खरे नहीं उतरे हैं। मैं आप सब मजदूर भाइयोंसे प्रार्थना करता हूँ कि इस दूसरे वर्षके उत्सवके समय आप लोग यह ठान लें कि गत अप्रैलको भूलोंको पुनरावृत्ति अब कभी नहीं होने पायेगी।

अब में मजदूरोंकी स्थिति के बारेमें कुछ शब्द कहना चाहता हूँ। इस विषयमें मजदूरोंको बहुत कुछ जानकारी हासिल करनी है। अधिक मजदूरी मिल जानेसे मजदूर धनाढ्य तो नहीं हो जायेंगे; और फिर धनाढ्य होना ही सब कुछ नहीं है। पूज्य अन- सूयाबेनने अपना जीवन केवल इसी हेतु अर्पित नहीं किया है कि आप लोगोंको अधिक मजदूरी मिल सके। उन्होंने अपना जीवन जो आप लोगोंकी खातिर दे रखा है उसका कारण तो यह है कि आप लोग इतना कमा सकें कि जीवनयापन थोड़ी सुविधासे करते धार्मिक बनें, नीतिवान बनें, व्यसनोंका त्याग करें और कमाईका सदुपयोग किया करें। अपने घरोंको अच्छा रखें और आपके बच्चे उचित शिक्षा पायें।अर्थात् वे चाहती हैं कि आप लोग अपनी आर्थिक, मानसिक और नैतिक स्थितिको बेहतर बना सकें।

आप लोगोंकी आर्थिक दशा पहले से कुछ सुधरी है, परन्तु अभी और भी सुधरनी चाहिए। इसके लिए दो उपाय काममें लाये जा सकते हैं: एक तो मिल-मालिकोंके साथ सलाह-मशविरा करके और दूसरा उनपर बेजा दबाव डालकर । इनमें से पहला तरीका ही ठीक है। पश्चिमी देशोंमें मजदूर वर्ग तथा मालिकोंके बीच सदा झगड़ा चलता रहता है। एक दूसरेके प्रति वैरभाव बढ़ता है, दोनों एक दूसरेको अपना शत्रु मानते हैं। मालूम होता है कि वही हवा हिन्दुस्तानमें भी बहने लगी है। यदि वह हवा यहाँ घर कर गई तो हिन्दुस्तानके उद्योग-धन्धे बरबाद हो जायेंगे और अशान्तिका वातावरण फैल जायेगा। अगर दोनों पक्ष इस बातका खयाल रखें कि मजदूरोंके बिना मिल-मालिकोंका काम नहीं चल सकता और मिल-मालिकोंके बिना मजदूरोंको मजदूरी नहीं मिल सकती तो तकरार ही नहीं हो सकती।

एक न्याययुक्त भाँग

परन्तु आज मिल-मालिकोंके कर्तव्य क्या है इसके बारेमें में कुछ नहीं कहना चाहता। अगर सिर्फ मजदूर ही अपने कर्तव्य और उत्तरदायित्वको समझ जायें और उसके लिए केवल शुद्ध साधनोंका ही उपयोग करें तो भी दोनों पक्षोंका हित हो सकता है। परन्तु इसमें दो बातोंकी जरूरत है। एक तो माँग उचित होनी चाहिए और फिर माँगोंको कबूल करवाने के लिए अच्छे साधन काममें लाये जायें। मालिक खराब स्थितिमें है यह जानकर पेश की गई माँग उचित नहीं कहीं जा सकती। आवश्यकतानुसार भोजनादि और बच्चोंकी शिक्षाके लिए पर्याप्त हो, इतनी मजदूरीकी माँग करना मुनासिब है। साधनोंकी शुद्धिका अर्थ है, मालिकोंपर दबाव न डालकर, उनकी न्याय- वृतिको जागृत करना और पंचोंको नियुक्त कराकर न्याय प्राप्त करना।

मजूर मंडल

शुद्ध साधनों द्वारा इस प्रकार न्याय प्राप्त करने के हेतु मजदूर मण्डलोंकी स्थापना की जानी चाहिए। उसका श्री गणेश हो गया है। आशा करता हूँ कि शीघ्र ही