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भाषण: अहमदाबादके मिल-मजदूरोंकी सभा में

गतवर्ष संन्यासी स्वामी श्रद्धानन्दजीने हमारे उत्सवमें भाग लेकर उसकी शोभा बढ़ाई थी; तबसे आजतक अनेक महत्त्वपूर्ण घटनायें घटित हुई हैं और परिणामतः हिन्दुस्तानका स्वरूप बदल गया है और देश में नया उत्साह भर गया है; परन्तु में हिन्दुस्तानकी सार्वजनिक स्थितिपर अपने विचार प्रकट करके आपका समय न लूंगा।

गत वर्ष अप्रैल मासकी घटनाओंमें मजदूरोंने जो भाग लिया था यदि उसके विषय में कुछ न कहूँ तो मजदूर वर्गका मित्र होनेका मेरा दावा और अपनेको मजदूर माननेका अभिमान दोनों मिथ्या कहलायेंगे।

अप्रैलके महीने में मुझे सरकारने गिरफ्तार कर लिया; मुझे गिरफ्तार करके सर- कारने भूल की, इसके बारेमें तो सन्देह ही नहीं है। फिर भी क्या मजदूर आगजनी या खुरेजी करके इस भूलको सुधार सकते थे ? अनसूयाबेनकी आप लोग पूजा करते हैं । वे अवश्य ही पूजनीय हैं। आप लोग उनकी गिरफ्तारीकी अफवाह सुनकर घबरा गये, रोबमें आ गये; आप लोगोंको ऐसा लगा मानो आपके पंख ही काट दिये गये हों। यह मनोदशा उनके प्रति आपके प्रेमको सूचित करती है। परन्तु मैं आपसे पूछता हूँ कि क्या उनके प्रति अपना स्नेह प्रदर्शित करनेकी खातिर मकानोंको जला डालना ठीक हो सकता है ? आप यह कहकर कि इस कृत्यमें और लोगोंका भी हाथ था, बच नहीं सकते। जब मुझे तथा आदरणीय अनसूयाबेनको यह समाचार मिला कि अहमदाबाद में रक्तपात किया गया है, घर जलाये गये हैं और इन हरकतोंमें मजदूर भी शामिल थे, तब हम दोनोंको कितना क्लेश पहुँचा होगा, यह मैं आपको बतलाने में असमर्थ हूँ। इस प्रकारके कामोंसे मुझे तो हिन्दुस्तानका भविष्य भयंकर ही दीख रहा है। जब-जब मजदूरोंके मनमें झुंझलाहट आये तब-तब वे देशके कानूनको साधारण चोर-लुटेरोंकी तरह भंग करना प्रारम्भ कर दें और जान-मालको नुकसान पहुँचाने लगें तो यह स्थिति आत्म- घात करने जैसी होगी और इससे भारतको अकथनीय संकटोंका सामना करना होगा। कभी-कभी हिंसात्मक कृत्य जाहिरा तौरपर फलीभूत होते दीख पड़ते हैं यह देखकर आप लोग भुलावेमें न आ जायें, मैं इतना ही चाहता हूँ। मैंने सत्याग्रह तथा कानूनके सविनय भंगका प्रचार तो किया था किन्तु उसका अर्थ यह तो कदापि न था कि उसमें कानूनका रक्तपात मिश्रित भंग भी शामिल किया जा सकता है। मेरा अनुभव तो यह है कि सत्य- का शुद्ध प्रचार रक्तपातके द्वारा हो ही नहीं सकता। जिसे अपने सत्यके प्रति निष्ठा है उसके मनमें तो अथाह सागरका धैर्य होगा। कानूनकी सविनय अवज्ञा तो वही कर सकता है जिसने कानूनका दुविनीत, हिंसापूर्ण अथवा रक्तपातमय भंग कभी न किया हो और आगे भी ऐसा न करना चाहता हो। जिस प्रकार कोई व्यक्ति एक ही समय- में गरम और नरम नहीं हो सकता उसी प्रकार कानूनके सविनय और अविनय भंगका एक साथ घटित होना असम्भव है। जिस प्रकार दिन-प्रतिदिन क्रोधका शमन करनेकी शिक्षा लेते रहनेके फलस्वरूप ही शान्ति प्राप्त होती है, उसी प्रकार कानून भंगकी शक्ति भी कानूनका निरंतर पालन करते रहने से ही आ सकती है। जो व्यक्ति गहरे प्रलोभनके समय भी उससे बच सकता है, वही जीता हुआ कहा जाएगा। उसी प्रकार क्रोध करनेके प्रबल कारण उपस्थित हो जानेपर भी जो व्यक्ति क्रोधको दबा सकता है उसीने